कपूरथला, 10 दिसंबर। आम आदमी पार्टी के जिला प्रधान गुरपाल सिंह इंडियन ने शुकवार को संयुक्त किसान मोर्चा(एसकेएम)के आंदोलन स्थगित करने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि समय आ चुका है जब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)को कानूनी रूप दिया जाए।इंडियन ने कहा कि अपना देश महान है,यहां सत्याग्रही किसान है!सत्य की इस जीत में हम शहीद अन्नदाताओं को भी याद करते हैं।
उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक आंदोलन की ऐतिहासिक जीत है। अब समय आ गया है कि एमएसपी को क़ानूनी रूप दिया जाए।बहुत मांगों को सरकार ने लिखित रूप से स्वीकार किया है, उस पर सरकार की क्या नज़र रहती है, उस पर हमारी नज़र रहेगी। हमारें होठों पर मुस्कान है लेकिन आंखें नम हैं।उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि आम आदमी पार्टी ने पहले दिन से ही किसानी संघर्ष के लिए बनता योगदान डाला है और वह किसानों के हकों की लड़ाई लड़ती रहेगी। उन्होंने कहा कि जब केंदर सरकार ने स्टेडियम को जेल बनाने का प्रस्ताव केजरीवाल को भेजा था तो केजरीवाल ने तुरंत इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी वर्करों ने किसान संघर्ष की दिल से हिमायत की और वह हमेशा किसानों के साथ ठहरेंगे। उन्होंने कहा कि किसानों की जीत के साथ ही यह आंदोलन भाजपा के अहंकार को तोड़ने व कॉरपोरेट की हार के लिए याद रखा जाएगा। देश के वंचित तबके को यह आंदोलन लम्बे समय तक प्रेरणा देता रहेगा। देश ही नहीं विश्व के सबसे लम्बे चले इस आन्दोलन ने देश की राजनीति सहित हर चीज को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है। मुख्य तौर पर तीन कृषि कानून की वापसी और एमएसपी कानून बनाये जाने की मांग को लेकर शुरू हुआ यह आन्दोलन सरकार के दमन के साथ-साथ ही और निखरता चला गया। सरकार हर हाल में इस आन्दोलन को कुचलने पर आमादा थी लेकिन किसानों के लिए उनकी ज़िंदगी और मौत का सवाल था। जिससे देश की तमाम गरीब व मध्यम वर्ग की ज़िंदगी भी जुड़ी थी।
उन्होंने कहा कि यदि किसान इस लड़ाई से पीछे हट जाता तो देश में फिर कोई और अपने अधिकार के लिए शायद ही इस सत्ता के खिलाफ खड़ा होने का साहस कर पाता।इतने विराट आन्दोलन को सरकार के तमाम षड्यंत्रों को खारिज करते हुए इतनी सूझबूझ के साथ चलाना वाकई आम किसानों के रणकौशल को दिखाता है।कदम-कदम पर मीडिया सहित सरकार के पालतू लोग जब आंदोलकारी किसानों को अपमानित करते हुए उनकी देशभक्ति तक पर सवाल उठा रहे हों, तब ऐसी विपरीत परिस्थितियों में किसानों ने आन्दोलन का मोर्चा कमजोर न पड़ने देकर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।उन्होंने कहा कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने आंदोलन के हर चरण में इसे कुचलने की कोशिश की। सबसे ज्यादा दिल दहला देने वाला प्रकरण लखीपुर खीरी, उत्तर प्रदेश में घटित हुआ जहां गाड़ियों के काफिले द्वारा प्रदर्शनकारी किसानों को कुचल दिया गया।इन प्रदर्शनों के दौरान 700 से ज्यादा आंदोलनकारी किसानों की मृत्यु हो गई।कइयों पर कठोर कानूनों के तहत मुकदमे दायर किए गए। सरकार ने अपने पुलिस तंत्र का इस्तेमाल आंदोलन को तितर-बितर करने के लिए किया।दिल्ली के सिंघू और टिकरी बॉर्डर को,जहां आंदोलनकारी किसानों ने अपना डेरा जमाया था,को व्यावहारिक तौर पर खुले जेलों में तब्दील कर दिया गया था। इस साल की शुरुआत में किसानों के गणतंत्र दिवस परेड के दौरान पुलिस ने कुछ किसान नेताओं पर बल प्रयोग किया।लेकिन इस सबके बावजूद किसान आंदोलनों को जारी रखने के अपने संकल्प पर अडिग रहे और सरकार को झुकना पड़ा।उन्होंने कहा कि यह आंदोलन स्वतंत्र भारत में एक ऐतिहासिक आंदोलन के रूप दर्ज रहेगा।इसमें 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी शहादत दी और शासक वर्ग के हमलों के बावजूद अपनी एकजुटता बरकरार रखी। इस आंदोलन को बदनाम करने के किए भाजपा और उसके सहयोगियों ने सभी तरह का हथकंडा अपनाया,लेकिन किसानों की एकता के सामने सभी हथकंडे बेकार हो गए।