साहिबजादों की याद में गर्ग परिवार, बजरंग दल और विहिप ने लगाया दूध का लंगर

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कपूरथला, 26 दिसंबर। हमारा देश क़ुर्बानीओ और शहादत के लिए जाना जाता है और यहाँ तक के हमारे गुरुओ ने भी देश कौम के लिए अपनी जानें तक न्यौछावरकी हैं। देश और कौम के लिए अपनी शहादत देने के लिए गुरुओ के लाल भी पीछे नहीं रहे। जी हाँ गुरुओ के बच्चो ने भी देश और कौम की ख़ातिर अपनी जान की बाज़ी लगा दी।दसवें गुरु पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की शहादत को कौन भुला सकता है। जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अजीम और महान शहादत दी। उनकी शहादत के साथ तो मान लो सरहिंद की दीवारे भी काँप उठी थी। वह भी नन्हे बच्चो के साथ हो रहे कहर को सुन कर रो पड़ीं।
उक्त बात विश्व हिंदु परिषद जालंधर विभाग के प्रधान नरेश पंडित ने कही। साहिबजादों जी के शहादत दिवस पर कपूरथला के अमृतसर रोड पर सरबत का भला फाउंडेशन के संस्थापक जथे.सुखजिन्दर सिंह बब्बर, बजरंग दल के ज़िला उपप्रधान आनंद यादव और गर्ग मोबाइल के अतुल गर्ग के नेतृत्व में सभी वर्करों के सहयोग के साथ दूध का लंगर लगाया गया।
नरेश पंडित ने बताया कि छोटे साहिबजादों की धर्म के लिए दी गई शहादत को कभी नहीं भुलाआ जा सकता है, जिसके लिए हमें सभी को जागरूक करने की ज़रूरत है। हमें सभी को इस तरह की कोशिश करने की ज़रूरत है। नरेश पंडित ने कहा की जब भारत की पवित्र धरती पर मुग़ल शासकों का राज था और रोज़ सवा मन जनेऊ उतार कर भोजन करने वाला औरंगजेब दिल्ली के तख़्त पर बिराजमान था तो देश को उसके ज़ुल्म से छुटकारा दिलाने के लिए दशमेश पिता ने खालसा पंथ की स्थापना की और अपने पिता श्री गुरु तेग़ बहादुर जी सहित माता गुजरी जी और चारें साहिबजादों को इस पवित्र कार्य के लिए कुर्बान कर दिया।दो चमकौर की गढ़ी में वीरगति को प्राप्त हुए और दो सरहिंद के जालिम नवाब ने दीवार में चिनवा दिए।सुखजिंदर सिंह बब्बर ने कहा कि साहिबजादों ने जुल्म के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए अपनी शहादत दी थी। उनकी शहादत को भूला नहीं जा सकता। उन्होंने धर्म और सच्चाई के मार्ग पर चलने का संदेश हमें दिया है और हमें यही संदेश को आगे लेकर जाना है और आपसी भाईचारे के साथ इस समाज की बेहतरी के लिए काम करना है।
जथे. बब्बर ने कहा कि हम उस सरबंसदानी गुरू के वंशज हैं जिनकी सहादत और ज्ञान के कारण हमारी पगड़ी की इज्जत पूरा संसार मानता है। जब माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादों को जालिम वजीर ने सर्दी के मौसम में ठंडे बुर्ज में कैद करके उनको भूखा रख कर उनके ऊपर इस्लाम कबूल करने का ज़ोर जोर लगाया तो गुरू घर के श्रद्धालू श्री मोती राम महरा जी ने अपनी धर्म पत्नी के गहने मुग़ल फ़ौज के पहरेदारा को रिश्वत में देके कर माता जी और दोनों साहिबजादों को दूध पिलाने की सेवा की।यह पता चलने पर जालिम वजीर ख़ान ने बाबा मोती राम महरा जी के पूरे परिवार को बच्चो समेत कोहलू में पिसवा कर शहीद कर दिया। बाबा जी की बेमिशाल कुर्बानी हमारी सांझी विरासत का एक गौरवशाली पन्ना है, उन्होंने कहा कि आज कई ताकतों हमारे समाज में हिंदु सिख भाईचारो में दरार डालना चाहतीं है परन्तु जब तक समाज माता गुजरी जी,छोटे साहिबज़ादे और बाबा मोती राम महरा और दीवान टोडर कब्ज़ा कर जी की इस बलि कथा को याद रखेगा तो ऐसों ताकतों को मुँह नहीं लगावेगा,इस पवित्र याद को श्रद्धा के फूल भेंट करने के लिए  गर्ग परिवार बजरंग दल और विहिप की तरफ से दूध का लंगर लगाया गया है।नरेश पंडित ने बताया कि औरंगजेब के शासनकाल में नवाज वजीर ख़ान की कचहरी में गुरू गोबिंद सिंह के छोटे दोनों साहिबज़ादे बाबा फतेह सिंह और बाबा जोरावर सिंह और माता गुजरी ने मुसलमान धर्म नहीं अपना कर शहीद होना कबूल किया था।धर्म की रक्षा के लिए साहिबजादे शहीद हुए थे। उनकी याद में दूध के प्रसाद का लंगर लगाया गया। इस मौके पर अतुल गर्ग, आनंद कुमार, हरविन्दर भट्ठल, अमन वर्मा, धीरज वर्मा प्रदीप बजाज, सौरभ, डा.राजेश जैन, मनप्रीत, गौरव, अनिल कमल, गगन, विशाल, सौरभ, सुरेश, गगन, कुलदीप, यशवंत, गौतम, भुपिन्दर, सुखमन, हैपी प्रशिक्षक, गौरव पठार, परमिन्दर अरुण पंडित, हनी आदि मौजूद थे।

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