करनाल, 12 दिसंबर। गुरबानी महान सिख गुरुओं के अमूल्य प्रवचनो का वह सार संकलन है जो कर्तव्य मार्ग पर चलकर मनुष्य को मुक्ति पाने का मार्ग बताता है। गीता और गुरबानी के ज्ञान तत्वों में काफी समानता है। गीता भी निष्काम कर्म का पाठ पढ़ाने वाला ऐसा ग्रंथ है जो मनुष्य को कर्तव्य पथ से विचलित होने से रोकता है।
यह टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने गीता जयंती समारोह के दौरान हरियाणा ग्रंथ अकादमी एवं दयानंद महिला महाविद्यालय कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित विचार गोष्ठी में अपने संबोधन के दौरान की। विचार गोष्ठी का विषय था ‘गुरबानी मानवीय आजादी दा प्रवचन’।
डॉ. चौहान ने कहा कि गीता भारतीय ज्ञान की उदात्त एवं सहिष्णू परंपरा की पहचान है। गीता के उपदेश किसी देश, समुदाय या पंथ विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए हैं। गीता भारतीय ज्ञान परंपरा का चरम है।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि सनातन धर्म ईश्वर तक पहुंचने के सभी मार्गों को बराबर का सम्मान देता है। उन्होंने गीता में कृष्ण-अर्जुन संवाद के एक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि महाभारत के दौरान युद्ध से पहले कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन शत्रु सेना में अपने निकट संबंधियों को देखकर विचलित हो जाता है और योगीराज कृष्ण से युद्ध न करने की प्रार्थना करता है। असमंजस में पड़े अर्जुन को दुविधा से बाहर निकालने के लिए कृष्ण ने जो कुछ कहा वही जीवन का सत्य है। गीता के अंत में कृष्ण ने अर्जुन से जो कहा वह सनातन धर्म की ऐसी विशेषता है जो इसे अन्य सभी धर्मों से अलग करता है। अंत में कृष्ण ने अर्जुन से कहा — यथेछसि तथा कुरु– अर्थात मैंने तुमसे सब कुछ कह दिया है। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है। तुम्हारा विवेक जो कहे तुम वही करो। दुनिया के किसी भी धर्मग्रंथ ने इतनी छूट आज तक नहीं दी है। गीता का यही ज्ञान भारतीय संस्कृति का मूल चिंतन है। डॉ चौहान ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों से कहा कि हमें ज्ञान परंपरा की छूटी हुई डोर को फिर से पकड़ना होगा।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि गीता जयंती महोत्सव यह संकल्प लेने का एक अच्छा अवसर है। उन्होंने कहा कि संकट गंभीर है। भगवत गीता जयंती महोत्सव से हम इस टूटी हुई डोर को पुनः जोड़ने का संकल्प लेकर जाएं। इस अवसर पर डॉ. चौहान ने श्रीकृष्ण के योगीराज एवं क्रांतिकारी रूपों का भी विश्लेषण किया।
डॉ. चौहान ने महान सिख गुरुओं की शौर्य एवं बलिदान गाथा का जिक्र करते हुए कहा कि अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर द्वारा दिया गया बलिदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने दूसरे के धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। डॉ. चौहान ने कहा कि गुरु तेग बहादुर के त्याग एवं बलिदान के कारण ही आज हम अपने धर्म का पालन कर पा रहे हैं। क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदू समाज को मिटाने की भरपूर कोशिशें की, लेकिन गुरु तेग बहादुर एवं गुरु गोविंद सिंह जैसे महान गुरुओं ने इस महान धर्म एवं संस्कृति को मिट जाने से बचाया। इसके लिए गुरु गोविंद सिंह को अपने चार पुत्रों का बलिदान भी करना पड़ा। पूरा देश और हिंदू समाज उनका ऋणी है।
इस विचार गोष्ठी में पंजाबी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की प्रोफेसर परमजीत कौर ने बतौर मुख्य वक्ता भाग लिया। पंजाबी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। विचार गोष्ठी में आमंत्रित विद्वानों में डॉ. सोनिया चौहान, डॉ. आरती अग्रवाल, डॉ. रुकमेश चौहान और डॉ. मनजीत कौर भी शामिल थीं। उन्होंने गुरबाणी में निहित मानवीय आजादी के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता डॉ. परमजीत कौर ने मनुष्य के आंतरिक अवगुणों एवं मानसिक बेड़ियों से मुक्त होने को ही मानवीय आजादी का मूल बताया। विशिष्ट अतिथि कुलदीप सिंह ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को अपने भीतर के भय से मुक्त होना चाहिए। इस अवसर पर कार्यक्रम में आए स्कूल एवं कॉलेजों के छात्र छात्राओं के बीच भारतीय ज्ञान परंपरा के विषयों पर एक साहित्य प्रश्नोत्तरी भी आयोजित की गई जिसमें सही जवाब देने वाले विद्यार्थियों को बतौर उपहार पुस्तकें वितरित की गई। विचार गोष्ठी में आमंत्रित अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार रखे। मंच संचालन डॉ. सोनिया चौहान ने किया।