जीते जी करें बुजुर्गों का सम्मान, यही है सच्चा श्राद्ध: प्राची मिश्रा

जीते जी करें बुजुर्गों का सम्मान, यही है सच्चा श्राद्ध: प्राची मिश्रा
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चंडीगढ़, 6 अक्टूबर। अपने बुजुर्गों के प्रति, पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा का भाव ही श्राद्ध कहलाता है। भाद्रपद की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या तक कुल सोलह दिनों की अवधि पितृपक्ष कहलाती है। इसे कनागत भी कहते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरों को अपने यहां से स्वतंत्र कर देते हैं ताकि वे अपनी संतान से पिंडदान के लिए पृथ्वी पर आ सकें।
श्री राम सागर शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट चंडीगढ़ उपाध्यक्ष प्राची मिश्रा ने जारी एक बयान में कहा कि श्राद्ध से सीधा तात्पर्य है अपने पितरों को याद करना, स्मरणांजलि अर्पित करके उनके एहसानों को याद करना और जीते जी कभी भी दुखित न करना। आज की स्वार्थ भरी दुनिया में बुजुर्गों का आदर घटता जा रहा है और मृत्योपरांत श्राद्ध करके यह बताने का प्रयास किया जाता है कि वे कितने पितर-भक्त हैं। यह तो श्राद्ध की, या यूं कहें कि अपने पितरों की तौहीन है। यदि सचमुच, तहेदिल से जीते-जागते मां-बाप व बुजुर्गों की सेवा की जाए तो मृत्योपरांत अपने मृत परिजनों को स्मरणांजलि प्रस्तुत करना श्राद्ध के माध्यम से सार्थक है। श्राद्ध का औचित्य, श्राद्ध की सार्थकता इसी में निहित है कि बुजुर्गों को जीते जी प्रथम सम्मान मिले, भरपूर प्रेम व प्यार से उनकी सेवा-सुश्रूषा हो जिससे उनकी आत्मा प्रसन्न हो और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो। बात छोटी सी है लेकिन विचार योग्य है विचार आवश्यक करें। इस दौड़ती भागती दुनियां मेँ सोचे कहीं हम अपने संस्कारो को पीछे तो नहीं छोड़ रहे जैसा आप अपने बच्चो को सिखाएंगे वैसा ही वो आपके लिए करेंगे।

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