चण्डीगढ़, 16 सितंबर। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपने मिशन ‘एक्शन अगेंस्ट करप्शन’ की मुहिम को तेज कर दिया है । हालांकि उन्होंने वर्ष 2014 में सत्ता की बागडोर संभालते ही कार्यों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भ्रष्टाचार के प्रति ‘जीरो टोलरेंस’ की नीति पर काम करते हुए कई विभागों में डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा दिया और गरीब वर्ग के लिए लागू की गई कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवेदन से लेकर धनराशि मिलने तक सब प्रक्त्रिया को ऑनलाइन कर दिया।
आरंभ से ही मुख्यमंत्री ने चार्जशीट-कर्मचारियों व अधिकारियों को ‘पब्लिक-डिलिंग’ के स्थानों से हटाकर हेड-क्वार्टर पर भेजने के आदेश दिए हुए हैं ताकि अपने रोजमर्रा के कार्यों में भ्रष्ट व टरकाऊ किस्म के अधिकारी व कर्मचारियों से प्रदेश की जनता को परेशानी का सामना न करना पड़े।
मुख्यमंत्री ने विकास कार्यों में गुणवत्ता लाने व टेंडर के आवंटन में पारदर्शिता लाने की दिशा में अटल-कदम उठाते हुए सभी विभागों को निर्देश दिए कि 5 करोड़ रुपए से अधिक लागत के विकास कार्यों को वैबसाइट पर डालकर उनके टैंडर ऑनलाइन आमंत्रित किए जाएं, इससे कथित ‘सैटिंगबाज’ ठेकेदारों में खलबली अवश्य मची है परंतु विकास कार्यों में गुणवत्ता का स्पष्ट तौर पर असर देखा जाने लगा है। मुख्यमंत्री के इस निर्णय की राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना हुई है। राज्य सरकार अब इंजीनियरिंग से जुड़े कार्यों के लिए भी एक पोर्टल लांच कर रही है जो कि पारदर्शिता की दिशा में एक और अग्रणी-कदम माना जा रहा है।
हाल ही में मुख्यमंत्री ने दो ऐसे निर्णय लिए हैं जो कि भ्रष्ट व आलसी किस्म के अधिकारियों व कर्मचारियों पर लगाम कसने का काम करेंगे। इनमें एक तो यह है कि वर्षों तक एक ही पद पर जड़ें जमाए बैठे अधिकारियों की ‘कार्य-कुंडली’ खंगाली जाएगी जो कि उनकी बची हुई नौकरी का भविष्य तय करेगी। यही नहीं उन जांच अधिकारियों का भी ‘कच्चा-चिठ्ठा’ तैयार किया जा रहा है जो कि दोषी अधिकारियों के साथ सेटिंग करके जांच-रिपोर्टों पर सर्प-कुंडली मारकर बैठे हैं।
कुछ विभागों में ‘पब्लिक-डिलिंग’ पर कई-कई वर्षों तक जमे कुछ अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ जब भ्रष्टाचार या कार्य में देरी की शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुंची तो वे तुरंत एक्शन में आ गए। उन्होंने मुख्य सचिव के माध्यम से ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों का रिकॉर्ड एकत्रित करने के निर्देश दिए जो विभिन्न विभागों,बोर्डों व निगमों के प्रधान कार्यालयों और फील्ड कार्यालयों में संवेदनशील प्रकृति के पदों पर लंबे समय से विराजमान हैं। ऐसे ‘जुगाड़ी कर्मचारी’ मुख्यमंत्री के ‘राडार’ पर हैं, अगर कहीं गड़बड़ी मिली तो बख्शने के मूड में भी नहीं हैं।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्य सचिव की ओर से सभी प्रशासनिक सचिवों से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि वे अपने-अपने विभागों में ऐसे ‘संवेदनशील पदों’ की सूची तत्काल तैयार करें, जिन पदों पर बैठे कर्मचारी/अधिकारी ‘पब्लिक-डिलिंग’, वित्तीय निहितार्थ वाले निर्णय लेने, लाइसेंस प्रदान करने, प्रमाण-पत्र बनाने, स्टोर-आइटम्स की खरीद आदि से संबंधित ‘संवेदनशील पदों’ पर तीन वर्ष से अधिक समय से लगातार जमे हुए हैं। ऐसे कर्मचारियों व अधिकारियों की सूची 5 अक्टूबर 2021 तक मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2021 को ‘सुशासन परिणाम वर्ष’ के रूप में मनाया जा रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल की कार्यशैली में ‘सुशासन के परिणाम’ साफ तौर पर दृष्टिगोचर हो रहे हैं। मुख्यमंत्री के दूसरे अहम निर्णय के तहत, विभिन्न मामलों में कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ चल रही जांच को जानबूझकर लटकाने वालों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है, जवाब-तलबी करनी शुरू कर दी है। अगर जांचकर्ता कोई सेवानिवृत्त अधिकारी है तो उससे जांच लेकर अन्य अधिकारी को सौंप दी जाएगी।
मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव के माध्यम से सभी प्रशासनिक सचिवों को हरियाणा सिविल सेवा (दंड एवं अपील) नियम, 2016 के नियम 7 के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही के निपटान के लिए निर्देश जारी कर दिए हैं।
मुख्यमंत्री के जब यह संज्ञान में आया कि नियम 7 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई के कई मामलों की जांच रिपोर्ट जांच-अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत करने में अत्यधिक देरी की जाती है तो उन्होंने इस पर तत्काल कार्रवाई करते हुए अनुशासनात्मक मामलों का समय पर निपटान सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी कर दिए। अब राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि ग्रुप-ए और बी के राजपत्रित अधिकारियों से संबंधित अनुशासनात्मक मामलों में सभी प्रशासनिक सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि राजपत्रित अधिकारियों के खिलाफ लंबित नियमित जांच को 30 नवंबर, 2021 से पहले फाइनल कर दिया जाए। अगर कोई जांच अधिकारी उक्त अवधि तक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने में असमर्थ है तो संबंधित प्रशासनिक सचिव मुख्य सचिव को 7 दिसंबर 2021 तक रिपोर्ट करेंगे जिसमें देरी के कारणों का उल्लेख किया जाएगा।
अगर किसी मामले में सरकार को यह आभास हुआ कि जांच अधिकारी जांच को पूरा करने में अनुचित विलंब कर रहा है, तो उस जांच अधिकारी (यदि वह सेवा में है) के खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। यदि किसी मामले की जांच सेवानिवृत्त अधिकारी द्वारा की जा रही है और उसकी कार्यप्रणाली संतोषजनक नहीं मिली अथवा जानबूझकर जांच को लटकाने की भावना लगेगी तो उनसे जांच का कार्य लेकर अन्य अधिकारी को सौंप दिया जाएगा। यही नहीं मुख्यमंत्री ने ग्रुप-सी व डी वर्ग के कर्मचारियों के विरूद्ध लम्बित नियम 7 एवं 8 के अन्तर्गत जांच के के मामलों की भी समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं।
साधारण खान-पान व सादे पहनावे के लिए राजनैतिक गलियारों में सादगी की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने राज्य सरकार के मेहनती कर्मचारियों को लगातार सम्मान भी दिया है,उनकी कई समस्याओं का निदान भी किया है।
मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों के हित में स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि सरकारी कर्मचारियों को देय तिथि के 3 महीने के अंदर नियमों के अनुसार ए.सी.पी पे-स्केल देना सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कर्मचारियों की चिर-लंबित मांग ‘नई एक्सग्रेसिया स्कीम’ को स्वीकृत किया। अगर किसी सरकारी कर्मचारी की 52 साल की उम्र से पहले मृत्यु हो जाती है तो उसके आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जाने लगी है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने जहां ईमानदार व मेहनती कर्मचारियों को इनाम देने की नीति बनाई है वहीं भ्रष्ट व काम में देरी करने वाले दागी कर्मचारियों को जांच के जाल में पकड़कर कर सबक सिखाने की तैयारी कर ली है। माना जा रहा है कि दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों को मुख्यमंत्री बख्शने के मूड में नहीं हैं और यह ‘एक्शन अगेंस्ट करप्शन’ अभियान का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।