करनाल, 25 अगस्त। संस्कृत और भारतीय संस्कृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीवन जीने की भारतीय पद्धति संस्कृत से ही प्रेरित है। भारतीय जीवन मूल्यों की बेहतर अभिव्यक्ति संस्कृत के अलावा किसी अन्य भाषा में करना संभव नहीं है। इस भाषा की वैज्ञानिकता को अब दुनिया मान चुकी है। संस्कृत का व्याकरण जितना वैज्ञानिक है उतना वैज्ञानिक विश्व की किसी भी अन्य भाषा का व्याकरण नहीं है। शोधकर्ता बरसों पहले इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत ही सर्वाधिक उपयुक्त और अनुकूल मानवीय भाषा है। यह टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने रेडियो ग्रामोदय के लाइव कार्यक्रम में संस्कृत की वैज्ञानिकता पर हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. दिनेश शास्त्री से चर्चा के दौरान की।
उन्होंने कहा कि संस्कृत की उद्गम स्थली हरियाणा ही है। कुरुक्षेत्र की भूमि में गीता के अवतरण से भी पहले सरस्वती नदी के किनारे आर्यों ने अपने तपोबल से वेदों की रचना की। इसी को ध्यान में रखते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्थापना संस्कृत विश्वविद्यालय को ध्यान में रखकर की गई थी, लेकिन कतिपय कारणों से बाद में इस फैसले को बदल दिया गया। डॉ. चौहान ने कहा कि संस्कृत भारत की संस्कार और आधार भाषा है। श्रावण पूर्णिमा के दिन से शुरू हुए संस्कृत पखवाड़े के अवसर पर हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. दिनेश शास्त्री ने भी कार्यक्रम में संस्कृत को लेकर अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।
डॉ. शास्त्री ने कहा कि संस्कृत का महत्व विश्व स्तरीय है और आज भी यह विश्व स्वरूप के साथ कायम है। विश्व संस्कृत दिवस का मतलब है कि विश्व में चाहे जितने भी जाति, धर्म, संगठन और द्वीप-महाद्वीप आदि बने हैं, सभी का आधार संस्कृत है और यह उनमें सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने कहा कि कालांतर में सनातन और वैदिक धर्म से संस्कृत को छीनने की कई कोशिशें हुई। न सिर्फ इससे साहित्य और शब्दकोश छीने गए बल्कि इसके ग्रंथों को भी जलाया गया। इस जीवन दर्शन को मिटाने की लाख कोशिशों के बावजूद यह धर्म आज भी वही खड़ा है। संस्कृत की ताकत का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है?
डॉ. दिनेश शास्त्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए लॉर्ड मैकाले ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से दिग्भ्रमित हुए हमारे बच्चों को यह समझना होगा कि वेद ही आदिग्रंथ हैं और पूरी दुनिया की उत्पत्ति का सार वेदों में ही निहित है। सनातन धर्म के बाद अस्तित्व में आए विभिन्न जीवन दर्शन का आधार भी वेद ही हैं। डॉ. शास्त्री ने अफसोस जताया कि भारत में वेदों में वर्णित सोलह संस्कारों पर कोई काम नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि यदि बच्चों में 16 संस्कार डाल दिए जाएं तो वह एक अनुशासित और पुष्ट नागरिक बन सकते हैं। हरियाणा संस्कृत अकादमी इन शास्त्रोचित सोलह संस्कारों पर काम करेगी।
डॉ. चौहान ने बताया कि वर्ष 1969 ने भारत सरकार ने श्रावण मास की पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन को विश्व संस्कृत दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस का श्रावण से इसलिए भी संबंध है क्योंकि प्राचीन काल में श्रावण मास से पहले गुरुकुलों में पढ़ाई का सत्रावसान हो जाता था और नए सिरे से सत्र की शुरुआत होती थी।
डॉ. शास्त्री ने भी बताया कि 16 जुलाई 2020 को बतौर संस्कृत अकादमी निदेशक का कार्यभार संभालने के बाद से उन्होंने कई काम करवाए हैं जिनमें पुरस्कारों की घोषणा, संस्कृत के छात्रों को छात्रवृत्ति देना और गुरुकुल संचालकों के लिए हरियाणा रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा की व्यवस्था कराना भी शामिल है। उन्होंने बताया कि विश्व भर के संस्कृत विद्वानों को एक सूत्र में जोड़ने के लिए उन्होंने संस्कृत का एक ऐप तैयार करने का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है। इस पर काम भी शुरू हो चुका है और मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस ऐप को निशुल्क रखने की घोषणा की है। हरियाणा के गुरुकुलो में करीब 2600 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं और 253 अध्यापक नियुक्त हैं। 1551 विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। दिल्ली राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से देश भर के गुरुकूलो को अनुदान मिलता है और एक पाठशाला में पांच विद्वानों को 8 से ₹12000 तक प्रति माह पैसे दिए जाते हैं। हरियाणा में इस समय 76 गुरुकुल हैं। डॉ. शास्त्री ने इन गुरुकुलों को महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय से जोड़े जाने की वकालत करते हुए कहा कि इनका प्रशासकीय नियंत्रण संस्कृत अकादमी के हाथों में दे दिया जाना चाहिए।
संस्कृत पर चर्चा के दौरान एक अन्य प्रतिभागी एवं संस्कृत विशेषज्ञ राजेश नैन ने भी पौराणिक प्रसंगों से संस्कृत की वैज्ञानिकता के कई प्रमाण प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि जीव-जंतुओं की संरचना एवं उनकी प्रकृति के संबंध में सनातन धर्म के शास्त्रों में बहुत पहले ही लिखा जा चुका है जिसका आधुनिक विज्ञान आज तक कोई जवाब नहीं ढूंढ पाया है।