करनाल, 20 अगस्त। अपनी कला, परंपरा और अपनी मिट्टी से जुड़ी सुगंध को न मिटने देने का नाम ही स्वदेशी है। अपनी परंपराओं एवं स्थानीय लोक कलाओं को जीवित रखने और उन्हें और समृद्ध करने की दिशा में किया गया कोई भी प्रयास सराहनीय है। यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कलाकारों से बातचीत के दौरान कही। कार्यक्रम में लकड़ियों से सुंदर कलाकृतियां बनाने वाले जींद निवासी दो शिल्पी भाइयों अक्षय हरिराम जांगड़ा और आकाश हरिराम जांगड़ा से विस्तृत चर्चा हुई।
काष्ठ कला की बारीकियों पर चर्चा करते हुए डॉ. चौहान ने दोनों से पूछा कि लकड़ियों से कलाकृतियां बनाने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली। इस पर काष्ठ शिल्पकार अक्षय हरिराम जांगड़ा ने बताया कि उनके पिता लकड़ी के फर्नीचर एवं बेड बनाने का काम करते थे। कलाकृतियां बनाने की ओर झुकाव उन्हीं को देखकर हुआ। अक्षय के छोटे भाई आकाश हरिराम जांगड़ा ने बताया कि उन्हें बचपन से ही क्ले मॉडलिंग एवं ड्रॉइंग करने का शौक था। पिताजी को फर्नीचर में नक्काशी का काम करते देख कलाकृतियां बनाने का शौक जागा। यह शौक अब जुनून बन चुका है। उसने बताया कि कलाकृतियां बनाने का काम दोनों भाई पिछले करीब 7-8 साल से कर रहे हैं। उनका अपना एक यूट्यूब चैनल भी है जिसके करीब 45 लाख दर्शक हैं।
डॉ. चौहान ने उनके कार्य की सराहना करते हुए कहा कि निसंदेह यह एक नैनो आर्ट है क्योंकि इस कार्य में अत्यंत महीन कारीगरी की आवश्यकता पडती है। उन्होंने पूछा कि कलाकृतियां बनाने के लिए किस-किस तरह के औजारों की आवश्यकता पड़ती है और वह कहां से उपलब्ध होते हैं? इस पर अक्षय ने बताया कि अधिकतर उपकरण उन्होंने खुद ही बनाए हैं और स्थानीय प्रशासन की ओर से भी उन्हें इस कार्य में अपेक्षित सहायता मिल जाती है।
क्या ये कलाकृतियां बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध हैं और इनकी कीमत क्या होती है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर अक्षय जांगड़ा ने बताया कि लकड़ी की कलाकृतियां बनाना सिर्फ उनका शौक है। इसे उन्होंने अभी व्यवसाय से नहीं जोड़ा है। फिलहाल उनका मकसद इस शिल्प कला को सीखना है। डॉ. चौहान ने जब इस कला की राह में पेश आने वाली चुनौतियों के बाबत पूछा तो अक्षय ने बताया कि कलाकृतियां तराशते वक्त कई बार उन्हें चोट भी लग जाती है। एक बार उनका हाथ कट गया था और एक बार उनके छोटे भाई आकाश का भी चेहरा कट गया था। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और स्वदेशी कलाओं को बढ़ावा देने के काम को जारी रखा।
अक्षय और आकाश के प्रशिक्षक एवं गुरु वेद प्रकाश पांचाल ने बताया कि दोनों बच्चों ने खुद अपना रास्ता बनाया है। उनकी अद्भुत प्रतिभा को देखकर ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी ने उन्हें अपने लिए ₹100000 प्रति माह के वेतन पर कलाकृतियों को बनाने का ऑफर दिया था, लेकिन इन दोनों भाइयों ने स्वदेशी कला को बढ़ावा देने के लिए इस ऑफर को ठुकरा दिया। इसके बाद इन्होंने अपना एक यूट्यूब चैनल तैयार किया जिससे उन्हें प्रति माह करीब ₹25000 की आमदनी हो रही है। अपने यूट्यूब चैनल पर यह दोनों भाई अपने द्वारा तैयार की गई बाइक, स्कूटर और थ्री व्हीलर की कलाकृतियों का प्रदर्शन करते हैं। वेद पांचाल ने कहा कि इन दोनों भाइयों का भविष्य उज्जवल है।
इस पर डॉ. चौहान ने कहा कि पैसा कमाने के बजाय काष्ठ कला को विकसित करने का लक्ष्य रखना एक सुंदर विचार है। इसके लिए वह इन दोनों को शुभकामनाएं देते हैं।
कार्यक्रम के दौरान हरियाणा की लोक गायकी पर भी चर्चा हुई। लोक गायक सुमित संकरोड ने हरियाणा की सुगंध से सराबोर रागनियां सुनाई। उन्होंने बताया कि हरियाणवी रागनियां गाने का उनका यह शौक करियर से प्रेरित नहीं था, बल्कि अपने आनंद के लिए उन्होंने गायन को चुना। उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान लॉकडाउन के कारण रागिनी का काम लगभग बंद हो गया था।