चंडीगढ़, 13 जुलाई। पंजाब विश्वविद्यालय के भू. पू. अध्यक्ष राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो. डॉक्टर वेद प्रकाश उपाध्याय ने ब्रह्मर्षि योग महाविद्यालय सैक्टर 19-ए चण्डीगढ़ में डॉ. राज कुमार शाण्डिल्य के संस्कृत काव्य ‘भासते भुवि भारतदेश:’ का विमोचन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मर्षि मिशन की अध्यक्षा ब्रह्मवादिनी स्वामी कृष्णकांता महाराज ने की। मुख्यातिथि पंजाब विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के चेयरमैन प्रो. वीरेन्द्र कुमार अलंकार तथा विशिष्ट अतिथि प्रो. डॉक्टर विक्रम कुमार विवेकी, प्रो. डॉ. लखबीर सिंह उपस्थित रहे। आचार्य देवकीनंदन भट्ट, आचार्य दिनेशचन्द्र सेमवाल, डॉ. रमेश चंद शर्मा तथा डॉ. धर्मेन्द्र शास्त्री सभी संस्कृत प्रेमी विद्वानों ने कार्यक्रम को सफल बनाया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. केशव देव ने किया।
ब्रह्मर्षि योग महाविद्यालय की संस्थापक प्राचार्या तथा अध्यक्षा स्वामी डॉ. मनीषा जी ने सारस्वत अतिथि के रूप में अपने आशीर्वचनों से कृतार्थ किया।
हिमाचल राज्य के जिला बिलासपुर के अन्तर्गत गेहड़वीं ग्राम में पैदा हुए हिन्दी व संस्कृत के विद्वान डॉ. शांडिल्य विगत 32 वर्षों से अध्यापन तथा लेखन कार्य से जुड़े हैं। वर्तमान में चण्डीगढ़ प्रशासन में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं। यह ग्रन्थ सात शीर्षकों तथा 700 श्लोकों में हिन्दी अनुवाद सहित रचित है। इसमें देवस्तुति के पश्चात् जीवन के लिए उपयोगी बातें, स्त्री की महत्ता तथा दशा, नशा प्रवृत्ति के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया है। विश्वनेता यशस्वी प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के व्यक्तित्व तथा उत्कृष्ट कार्यों की प्रशंसा के साथ ही उनके दीर्घायुष्य तथा नैरुज्य की कामना की गई है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों तथा प्राकृतिक दृश्यों का मनोहारी वर्णन किया गया है। भारत की आत्मा गंगा, हिमालय तथा राममंदिर आदि की स्तुति तथा महत्ता का वर्णन किया गया है। ऋतुओं, उत्सवों, महापुरुषों तथा शिक्षा व्यवस्था का वर्णन किया गया है । सैनिकों, कृषकों तथा वैज्ञानिकों को नमन करते हुए प्रदूषण जैसी समस्या से बचने के लिए वृक्षों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। ‘सभी भाषाओं की जननी संस्कृत आज भी समाज को दिशा देने में समर्थ है’ यह ग्रंथ इस तथ्य को सिद्ध करता है । कार्यक्रम में सभी विद्वानों ने डॉ.धर्मेन्द्र द्वारा चण्डीगढ में संस्कृत की दयनीय दशा और उसके प्रचार प्रसार के लिए एक योजना बनाकर काम करने के लिए कहा तो डॉक्टर मनीषा ने संस्कृत के उत्थान के लिए हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया । कार्यक्रम के अन्त में डॉक्टर राजकुमार ने सभी विद्वानों का धन्यवाद किया।