चण्डीगढ़, 21 फरवरी। महर्षि दयानंद सरस्वती जी का द्वितीय जन्म शताब्दी समारोह केंद्रीय आर्य सभा के तत्वाधान में आर्य समाज सेक्टर 7-बी चंडीगढ़ में आज शुरू हो गया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः कालीन यजुर्वेद यज्ञ से आरंभ हुआ जिसमें यज्ञ, भक्तिमय, भजन और प्रवचन हुए। सायंकालीन कार्यक्रम के दौरान काफी संख्या में लोगों ने भाग लिया। आचार्य (डॉ.) शामश्रमी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सभी लोगों को पशु -पक्षियों की चालो को छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को उल्लू की चाल छोड़ने में सदा तत्पर रहना चाहिए। उल्लू अज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि भारत जब जगतगुरु हुआ करता था तो वह अपने ज्ञानवान के कारण ही बन पाया था। हमें पश्चिमी देशों का अनुसरण नहीं करना चाहिए। हमें प्राचीन भारत जैसा बनने का प्रयास करना चाहिए। भेड़िए की चाल का अर्थ है क्रोधी स्वभाव। क्रोध में मनुष्य विवेक खो देता है। विवेक रहित मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता है। क्रोध त्याग देने से मनुष्य का मौद्रिक मूल्य भी बढ़ जाता है। श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि क्रोध नरक का द्वार है इसके अलावा भी अनेक उदाहरणों के द्वारा क्रोध को छोड़ने की बात कही गई है। कुत्ते की चाल का अर्थ है अपनी ही जाति वालों से द्वेष करना । कुत्ते कभी झुंड में नहीं रहते हैं। एक कुत्ता दूसरे कुत्ते से हमेशा द्वेष करता है। इसी के अंतर्गत कई लोग अपने भाइयों से पारस्परिक द्वेष करते हैं। जब- जब किसी ने अपनों के साथ द्वेष किया तब- तब उसका समूल विनाश हुआ है। हम सभी को अपने सभी समीपस्थों से द्वेष नहीं करना चाहिए। अधिकतर देखा जाता है कि लोग अपनों से ही द्वेष करने लग जाते हैं। वेद कहता है कि परस्पर द्वेष नहीं करना चाहिए। इससे पूर्व आर्य भजनोपदेशक पंडित दिनेश दत्त ने अपने मधुर भजनों- अरबों साल पहले यहां आर्य समाज था, आज भी है कल भी रहेगा और सब सत्य विद्या जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सब का आदि मूल परमेश्वर को बतलाते हैं आदि मधुर भजनों से उपस्थित लोगों को आत्मविभोर कर दिया।