योग एवं ध्यान द्वारा प्राप्त होती है निश्काम कर्म करने की शक्ति: मंजू मल्होत्रा फूल

योग एवं ध्यान द्वारा प्राप्त होती है निश्काम कर्म करने की शक्ति: मंजू मल्होत्रा फूल
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चंडीगढ़, 20 जून। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है। पहली बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी। जिसके बाद 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया।
लेखिका मंजू मल्होत्रा फूल का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली वर्तमान परिस्थितियों में जब पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में योग द्वारा अपनी चेतना को जगाना,अपनी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए योगासन, प्राणायाम और ध्यान का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अधिकतर लोग योग का अर्थ केवल आसन से लगाते हैं। किंतु आसन योग का मात्र एक हिस्सा है। योग, आसन अभ्यास से कहीं अधिक है।
योग के चार प्रमुख रास्ते हैं: राजयोग,कर्मयोग, भक्तियोग,ज्ञानयोग। शरीर के अंदर मन सारे क्रियाकलापों का बिंदु है। ज्यादातर बीमारियों की जड़ मन में ही होती है, परंतु दिखाई पड़ती है शरीर पर। योग हमारे मन की परत दर परत खोलता जाता है और हमारे कष्टों, तनाव एवं बीमारियों को बाहर कर देता है। फिर शुद्ध मन में एकाग्रता की शक्ति आती है और चेतना का विकास होता है।
हमारे धर्म ग्रंथों में, शास्त्रों में, योग का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। जिसका ज्ञान प्राप्त करके एवं उसे जीवन में धारण करके हम बहुत सी बीमारियों से बच सकते हैं, और एक अच्छा जीवन जी सकते हैं।

आरुरुक्षोः, मुनेः, योगम्, कर्म, कारणम्, उच्यते,
योगारूढस्य, तस्य, एव, शमः, कारणम्, उच्यते।।

श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय में बताया गया है कि योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील मानव के लिए योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही हेतु कहा जाता है और योगरूढ़ हो जाने पर उस योगरूढ़ मानव का जो सर्वसंकल्पों का अभाव है वही कल्याण में हेतु कहा जाता है।
योगरूढ़ का शाब्दिक अर्थ है ऐसे योगिक शब्द जो साधारण अर्थ को छोड़ विशेष अर्थ ग्रहण करें । यानी ऐसे शब्द जो सामान्य अर्थ को ना प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं योगरूढ़ कहलाते हैं। जब मानव की इंद्रियां किसी विषय को ना उठे, और मन में स्मरण बिना कोई चिंता भी ना हो । जब ऐसा हो तब मानव योगरूढ़ कहलाता है। अतः तब मानव सामान्य ना होकर विशेष हो जाता है। विवेकशील मानव अपनी आत्मा का संसार में आप ही उद्धार करते हैं, क्योंकि कामना से रहित जो आत्मा है वह मित्र के समान उपकारी है। जिसने अपनी आत्मा को जीत लिया तो वही आत्मा उसकी बंधु है।और जो आत्मा को नहीं जीता पाया उसकी आत्मा ही उसका शत्रु है। मनुष्य जब फल की इच्छा किए बिना कर्म करता है तब वह अपनी आत्मा पर विजय पा लेता है। और यह सब ध्यान और योग के माध्यम से ही संभव है।
जो मनुष्य ज्ञान योग की प्राप्ति करना चाहता है उनकी ज्ञान प्राप्ति का कारण कर्म कहा गया है। क्योंकि निष्काम कर्म करने से चित शुद्ध होता है। चित शुद्धि से ज्ञान की प्राप्ति होती है और उस ज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य को शांति मिलती है। कामना से रहित जो आत्मा है वह मित्र के समान उपकारी है। योग एवं साधना से आत्मा एवं मन को वश में रखा जा सकता है। मन को एकाग्र करने के लिए, कर्मों को उचित करने के लिए एवं आत्म शुद्धि के लिए योग साधना करना चाहिए।

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