राज्य में गिरते भू-जल स्तर के उत्थान के लिए वाटर रिचार्ज व उपयोग संबंधी योजनाओं की आवश्यकता: मनोहर लाल

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चंडीगढ़, 13 जून। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि किसानों को भू-जल, नदियों का पानी तथा शोधित जल की सुचारू उपलब्धता के लिए आगामी 2 वर्षों हेतु प्रदेश में केन्द्रीयकृत पानी निगरानी प्रणाली तैयार की जाए, जिसमें जिलों, ब्लॉक तथा गांवों को शामिल किया जाए। इसके लिए उन्होंने अधिकारियों को शीघ्र ही यह योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
मुख्यमंत्री ने आज हरियाणा वाटर रिसोर्स अथॉरिटी की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि राज्य में गिरते भू-जल स्तर के उत्थान के लिए वाटर रिचार्ज व उपयोग संबंधी एक समायोजित योजना की आवश्यकता है ताकि लोगों को खेती तथा घरेलू उपयोग के लिए उचित मात्रा में पानी उपलब्ध हो सके। इसे लोगों तथा जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से गांव स्तर तक बढ़ाया जाए ताकि भावी पीढ़ी को लम्बे समय तक पानी की उपलब्ध में दिक्कत न उठानी पड़े।
उन्होंने अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर योजना बनाई जाएं और प्रत्येक गांव का जल उपलब्धता सूचकांक तैयार करें, जिससे लोगों को उनके जलीय भविष्य की जानकारी मिल सके।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके साथ ही गत 5 दशकों में राज्य के कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल तथा पानीपत सहित कुछ जिलों में भू-जल का स्तर 80 फुट तक नीचे चला गया है, जोकि गंभीर समस्या है। जहां भू-जल का स्तर नीचे जा रहा है, वहीं किसानों की भू-जल पर निर्भरता और दोहन लगातार बढा है। इसके साथ ही पानी के तर्कसंगत उपयोग और अभाव वाले क्षेत्रों में पानी पहुंचाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गत सरकारों द्वारा कृषि के उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ाने पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और लोगों की भू-जल पर निर्भरता बढ़ती गई । इससे ट्यूबवैल इत्यादि लगाने पर होने वाले खर्च से किसानों की माली हालत और कृषि अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसलिए किसानों को चाहिए कि जिन क्षेत्रों में भू-जल नीचे चला गया है, उनमें सुक्ष्म सिंचाई व्यवस्था को प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा कि उद्योगों को शोधित जल उपलब्ध करवाने के लिए जन-स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग समुचित पाइपलाइन बिछाने का कार्य करे और उचित देखरेख करे।
हरियाणा वाटर रिसोर्स अथोरिटी की चेयरपर्सन केशनी आनन्द अरोड़ा ने बैठक के दौरान इस संबंध में विस्तृत जानकारी दी और सभी नवनियुक्त सदस्यों का परिचय करवाया। उन्होंने कहा कि राज्य में सभी को आवश्यकतानुसार पानी की उपलब्धता के लिए समायोजित पानी योजना तैयार की जाएगी। इसमें विभिन्न हिस्सों में भू-जल स्तर का वर्गीकरण, क्षेत्रों के आधार पर अध्ययन किया जाएगा। ऑथोरिटी भारत सरकार तथा राज्य सरकार की जल संबंधी योजना का अनुकरण करके लोगों को जागरूक करने का कार्य करेगी। इसके साथ ही उन्होंने कार्यालय की स्थापना, बजट की जानकारी तथा अन्य जानकारी साझा की।
सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव देवेन्द्र सिंह ने कहा कि हरियाणा के 22 जिलों में से 14 जिलों में भू-जल दोहन से उत्पन्न समस्या ने विकराल रूप ले लिया है, इसके साथ ही 7 जिलों में जल भराव तथा जलीय लवणता की समस्या है। उन्होंने कहा कि भू-जल दोहने के कारण वर्ष 2004 में राज्य के 114 ब्लॉक में से 55 ब्लॉक रेड केटेगिरी में आ चुके थे, जोकि करीब 48 फीसदी थे। परन्तु 2020 में 141 ब्लॉक में से 85 ब्लॉक लाल श्रेणी में पहुंच गए हैं, जोकि 60 प्रतिशत है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे भू-जल की निर्भरता कम करें और फसल की विविधता को प्राथमिकता दें।
मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव डीएस ढेसी ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा शुरू की गई जलीय उपयोग के लिए ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना की न केवल देश में बल्कि विश्व बैंक द्वारा भी सराहना की गई है। देश में शुरू की गई इस प्रकार की यह पहली योजना है, जोकि दूरदर्शिता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि नहरी पानी के उपयोग एवं वितरण की जानकारी के अभाव में लोगों की निर्भरता ट्यूबवैल पर बढ जाती है, इसके एक समायोजित योजना तैयार करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही बड़े शहरों में द्वि-जलीय पाईप लाईन का विस्तार किया जाए।
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव वी उमांशकर ने कहा कि पानी की समस्या को हल करने के लिए स्थानीय स्तर पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में पानी में लवणता अधिक है, वहां माईक्रो शोधन प्लांट लगाए जाएं और लवणता में कमी लाकर पानी का उपयोग किया जाए। इस अवसर पर हरियाणा वाटर रिसोर्स अथोरिटी के सदस्य डी पी बेनीवाल, मुख्तयार सिंह लाम्बा तथा मिकाडा के प्रशासक पंकज कुमार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ सतबीर सिंह कादियान सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

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