करनाल, 2 जून । तंबाकू सिर्फ कैंसर ही नहीं फैलाता, बल्कि यह उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों का भी एक बड़ा और प्रमुख कारण है। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से अब यह बात साबित हो चुकी है कि तंबाकू में निकोटीन और डोपामिन के अलावा छह – सात हजार अन्य हानिकारक पदार्थ भी मौजूद होते हैं। इनमें 70% तत्व ऐसे हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं। दुनिया भर में कैंसर के 25% मामलों के पीछे तंबाकू का ही हाथ है।
यह बात कल्पना चावला राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय के विशेषज्ञों डॉक्टर राजेश गर्ग और डॉक्टर विकास ढिल्लों ने विश्व तंबाकू निषेध दिवस के उपलक्ष्य में रेडियो ग्रामोदय की वेकअप करनाल कार्यक्रम शृंखला में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान से चर्चा के दौरान कही। डॉ. चौहान ने कहा कि देश और दुनिया में तंबाकू उत्पादों का बढ़ता प्रचलन चिंता का विषय है। तंबाकू का सेवन हूँ सदियों से होता रहा है और हरियाणा के ग्रामीण अंचल में एक हुक्का आज भी ख़ासा प्रचलित है। आज हमें ग्रामीण अंचल के लोगों को यह समझाना होगा कि किसी ज़माने में किसी को समाज से बहिष्कृत करने के लिए भी उसका हुक्का-पानी बंद कर न देने की बात कही जाती थी आज वैज्ञानिक शोध के आधार पर ख़ुद हुक्के को अलविदा कहने का समय आ गया है।
कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजेश गर्ग ने कहा कि तंबाकू को लेकर विश्व में कई युद्ध भी हो चुके हैं। तंबाकू लॉबी विश्व स्तर पर बहुत ताकतवर है। पिछली शताब्दी के दौरान लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि यह मानव शरीर के लिए कितना हानिकारक है। लेकिन आज नए-नए वैज्ञानिक अध्ययनों एवं शोध से यह बात सामने आ चुकी है कि तंबाकू कई प्रकार के कैंसर और सांस की बीमारी का प्रमुख कारण है। फेफड़े, त्वचा और मुंह के कैंसर में अक्सर तंबाकू का योगदान पाया जाता है। अब इसके हानिकारक रासायनिक तत्वों की पहचान कर ली गई है।डॉ. चौहान ने लोगों में फैली उस आम धारणा का जिक्र किया कि हुक्का ज्यादा नुकसानदेह नहीं है क्योंकि इसमें धुआं पानी से होकर गुजरता है। डॉ. राजेश गर्ग ने इस धारणा को पूरी तरह गलत बताते हुए कहा कि हुक्का भी सिगरेट के जितना ही नुकसानदेह है।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. विकास ढिल्लो से पूछा कि तंबाकू या सिगरेट कैंसर के अलावा और क्या-क्या नुकसान पहुंचा सकता है? इस पर डॉ. ढिल्लो ने बताया कि बीड़ी एवं सिगरेट में निकोटीन और टार आदि हानिकारक तत्व पाए जाते हैं जिनमें मुख्य घटक निकोटीन है। यह मस्तिष्क के अंदर डोपामिन को सक्रिय करता है जो हमें फील गुड जैसी अनुभूति कराता है। डोपामिन हमारी रक्त धमनियों को सिकोड़ता है जिससे उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके खतरे का आकलन इस तरह से किया जा सकता है कि हर सिगरेट के साथ व्यक्ति को हृदय रोग होने की संभावना 5% बढ़ जाती है। सिगरेट क्रॉनिक लंग कंडीशन (सीओपीडी) को बढ़ावा देता है जो दुनिया में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। कैंसर में भी यह ओरल कैविटी कैंसर, सांस की नली का कैंसर और फेफड़ों के कैंसर का कारण है।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रवीण धनखड़ ने पूछा कि आखिर युवा तंबाकू की ओर इतने ज्यादा आकर्षित क्यों हो रहे हैं? क्या इसका कोई औषधीय या हर्बल इस्तेमाल भी है? इस पर डॉ. गर्ग ने कहा कि तंबाकू का कोई भी औषधीय इस्तेमाल अब तक सामने नहीं आया है।
देसी तंबाकू और फ्लेवर्ड तंबाकू में बुनियादी अंतर संबंधी प्रवीण के सवाल पर डॉ. गर्ग ने कहा कि हुक्का बार और ई-सिगरेट नए तरह का नशा है। इसमें एक द्रव्य पदार्थ होता है जिसे बैटरी के जरिए गर्म किया जाता है। इससे भाप निकलती है जिसे लोग सांस के जरिए अंदर खींचते हैं। इस भाप में भी तंबाकू के लगभग वही सारे कार्सिनोजेनिक तत्व मौजूद होते हैं। इसलिए यह कहना बिल्कुल गलत है कि ई-सिगरेट का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।
चर्चा के दौरान प्रवीण धनखड़ ने डॉ. चौहान से पूछा कि तंबाकू व अन्य नशीले पदार्थों पर सरकार पूरी तरह प्रतिबंध क्यों नहीं लगा देती और इस दिशा में क्या कर रही है? डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि तंबाकू समेत अन्य मादक पदार्थों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना व्यावहारिक रुप से अत्यंत कठिन है। पूर्व में ऐसे प्रयास सफल नहीं हो पाए। गुजरात और बिहार में शराब एवं अन्य मादक पदार्थों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। इसके बावजूद वहां अवैध शराब एवं नशाखोरी के मामले आते रहते हैं। समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध लगाते ही बीड़ी मजदूरों के रोजगार का मुद्दा उठाने लगता है। इसलिए, यह काम समाज की जागरूकता से ही संभव है। डॉ. राजेश गर्ग ने भी उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि तंबाकू व्यवसाय से लाखों लोगों का व्यवसाय जुड़ा हुआ है और इसकी लॉबी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अवसर पर बहुत मजबूत है। तंबाकू पर अचानक पूर्ण प्रतिबंध लगा देना शायद संभव नहीं है। समाज के अंदर ही इसका विकल्प ढूंढना होगा।