चंडीगढ़, 31 मई । हिंदी भाषा में ‘उदंत मार्तण्ड’ के नाम से पहला समाचार पत्र ‘पंडित युगुल किशोर शुक्ल’ द्वारा 30 मई 1826 में प्रकाशित हुआ। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उदंत मार्तण्ड से शुरू हुआ हिंदी पत्रकारिता का यह सफर आज भी बरकरार है और हिंदी पत्रकारिता दिनोंदिन समृद्धि की ओर कदम बढ़ा रही है। यह कहना है लेखिका एवं समाजसेवी मंजू मल्हो़त्रा फूल का।
मंजू बताती है कि हिंदी समाचार पत्रों ने समाज में अपना एक बहुत अच्छा एवं अहम स्थान बना लिया है। समाज और राजनीति की दिशा और दशा को बदलने और सुधारने में हिंदी पत्रकारिता ने काफी मदद की है। तकनीक के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता समृद्ध तो हुई है, लेकिन समृद्धि के साथ पत्रकारों के समक्ष विश्वसनीयता और निष्पक्षता की सबसे बड़ी चुनौती खड़ी हुई है । किसी समय में सरकारों को पलटने वाली तथा सत्ता को चुनौती देने वाली हिंदी पत्रकारिता आज जिस हालत में है, उससे पत्रकारों की विश्वसनीयता पर निरंतर सवाल खड़े हो रहे हैं। देश को आजादी दिलाने में हिंदी पत्रकारों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों की आवाज को बुलंद करने के लिए हिंदी पत्रकारिता ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। जिसके कारण हिंदी पत्रकारिता को सम्मान भी मिला। आजादी के बाद देश के विकास में भी हिंदी पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल के दौरान तानाशाहो के खिलाफ पत्रकारों ने जमकर आवाज बुलंद की। हैंड कंपोजिंग से लेकर मोबाइल और इंटरनेट अत्याधुनिक उपकरणों, कंप्यूटर, लैपटॉप जैसे साधनों तक का सफर तय करती हुई हिंदी पत्रकारिता ने एक लंबा सफल सफर तय किया है ।आज हिंदुस्तान में 50 करोड़ से ज्यादा अलग-अलग समाचार पत्रों की प्रतियां प्रकाशित होती हैं । इसके अलावा ऑनलाइन पोर्टल समाचारों की भी संख्या काफी अधिक है।
पहले अखबार समाज का दर्पण माने जाते थे। पत्रकारिता मिशन होती थी। लेकिन अब इस पर पूरी तरह से व्यावसायिकता हावी है। कभी हिंदी पत्रकारों की कलम ने ना केवल अपने अखबारों को शीर्ष तक पहुंचाया, बल्कि अंग्रेजी अखबारों को भी कड़ी टक्कर दी। परंतु हिंदी पत्रकारिता ने जिस सम्मान को स्पर्श किया वह अब देखने को कम मिलता है।
हिंदी पत्रकारिता आज कहां है इस पर निश्चित ही गंभीरता से सोच- विचार करने की जरूरत है। आज देश में विश्वसनीयता की चुनौती है। आज अंग्रेजी अखबारों के पत्रकारों को अधिक वेतन मिलता है, जबकि हिंदी अखबारों के पत्रकारों को काफी कम वेतन मिलता है।यदि इंटरनेशनल एजेंसियों के सर्वे की बात करें तो पता चलता है कि हिंदी पत्रकारों की स्थिति सबसे बदतर है। सरकारों को भी हिंदी पत्रकारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई पॉलिसी बनाये जिससे हिन्दी के पत्रकारों का भी समाज में सम्मान का स्थान ओर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में हिंदी पत्रकारिता निष्पक्षता के साथ सतत बढ़ती रहे, और हिंदी पत्रकारिता की प्रगति के साथ हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी का भी न केवल देश में अपितु समस्त विश्व में प्रचार-प्रसार और सम्मान भी बड़े। इसी कामना के साथ हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएँ।
हिंदी समाचार पत्रों का समाज में अपना एक अहम स्थान: मंजू मल्होत्रा फूल
