हिंदी भाषी देश भारत की अदालतों में अंग्रेजी का दबदबा क्यों: डॉ. चौहान

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करनाल, 16 मई। भारत एक हिंदी भाषी देश है और यहां की राजभाषा भी हिंदी है। इसके बावजूद देश की अदालतों में कामकाज की भाषा ब्रिटिश उपनिवेशवाद के काल से लेकर आज तक अंग्रेजी क्यों बनी हुई है? वह दिन कब आएगा जब देश की ऊपरी और निचली सभी अदालतों में हिंदी में कामकाज होना शुरू होगा? इसकी राह में अड़चनें क्या हैं और क्यों हैं?
अदालती कामकाज की भाषा पर यह गंभीर सवाल भारतीय जनमानस में हमेशा से कौंधते रहे हैं। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने भी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में चर्चा के दौरान यह महत्वपूर्ण सवाल उठाए। कोरोना के अदालती कामकाज पर पड़ने वाले प्रभावों पर हुई चर्चा में उनके साथ शामिल थे करनाल जिला अदालत के वरिष्ठ वकील सुरेश गोयल। एडवोकेट सुरेश गोयल ने भी यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि अदालतों में सुनवाई भले हिंदी में हो, लेकिन बाकी सभी प्रक्रियाएं अंग्रेजी में ही पूरी होती हैं।
जिला अदालतों में हिंदी में कितना काम होता है और अंग्रेजी का दबदबा कितना है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर एडवोकेट गोयल ने बताया कि अदालतों में ड्राफ्टिंग और बहस का 95% काम अंग्रेजी में ही होता है। जिला अदालतों में कम से कम इतनी छूट है कि कुछ पीठासीन पदाधिकारी हिंदी में बहस करने की अनुमति दे देते हैं, लेकिन उस बहस की ड्राफ्टिंग और अन्य दस्तावेजी प्रक्रिया का अंग्रेजी में ही अनुवाद होता है। जहां तक अड़चनों का सवाल है, इसके लिए जनमानस की सोच बदलनी होगी। हमें अपनी राजभाषा पर गर्व करना होगा और हिंदी के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना होगा। यह सोचने वाली बात है कि जिस देश की एक बड़ी आबादी गांवों के उन इलाकों में निवास करती हो जहां साक्षरता दर कम है, वहां की अदालतों में अंग्रेजी में न्याय दिया जाता है।
एडवोकेट गोयल ने बताया कि अदालतों में हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने के लिए उनका संगठन कार्य कर रहा है। इस दिशा में उनके संगठन भारत भाषा अभियान की ओर से हाल में एक बैठक भी बुलाई गई थी जिसमें बार एसोसिएशन के कई पदाधिकारी शामिल हुए थे। गोयल ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों में हिंदी में कामकाज होता है और वह कुछ मामलों में शामिल भी हो चुके हैं।
ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान ने कहा कि कोरोना से सबका जीवन प्रभावित हुआ है। अदालत भी उनमें से एक हैं। अदालतों में इन दिनों क्या-क्या काम हो रहे हैं और कौन-कौन से काम बंद पड़े हैं? उनके इस सवाल पर गोयल ने बताया कि कोरोना का न्यायिक प्रक्रिया पर भी बहुत घातक प्रभाव पड़ा है। माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर अदालतों में फरियादियों, वकीलों और न्यायिक अधिकारियों का आना सीमित कर दिया गया है। केवल आपात मामलों की ही सुनवाई की जा रही है, जैसे जमानत और स्टे मामले। अर्जेंट मामलों में सिर्फ जमानत और सुपरदारी आदि के मामले ही सुने जा रहे हैं।
पिछले साल लॉकडाउन खुलने के बाद न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों को यह आदेश दिए गए थे कि मामलों की सुनवाई में स्थगन आदेश से यथासंभव बचा जाए और मामलों को जल्द से जल्द निपटाया जाए। अदालतों में पहले से ही लंबित मामलों की एक लंबी लिस्ट है। कोरोना से उत्पन्न स्थिति के कारण अदालतों में मामलों का बैकलॉग बढ़ना तय है।
चर्चा के दौरान डॉ. चौहान ने बताया कि गांव में कोरोना की स्थिति चिंताजनक है। गांव सालवन में चार और राहडा में तीन लोगों के कोरोना से मरने की खबर है जबकि गांव गोंदर में कई दिनों से मौत का सिलसिला जारी है। इस पर एडवोकेट गोयल ने भी कहा कि गांवों मैं करोना गाइडलाइंस का सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। ना लोग मास्क लगा रहे हैं, न ही अपने घरों में रुक रहे हैं। वे सामाजिक दूरी भी नहीं बरत रहे। संक्रमण का यह फैलाव इसी का नतीजा है।
चर्चा में भाग लेते हुए पत्रकार हरविंदर यादव ने रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में कुछ समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन को लेकर कुछ समस्याएं पेश आ रही हैं। रजिस्ट्रेशन कराने के वक्त लोगों को शेड्यूल नहीं मिल पा रहे। मैनुअल मोड पर रखने से परेशानी हो रही है और लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

समय पर पता चले तो ब्लैक फंगस का उपचार संभव

डॉ. चौहान ने कहा कि कोरोना के इस दौर में एक नई खतरनाक बीमारी ब्लैक फंगस का पता चला है। समय पर अगर इस फंगस का इलाज ना हो तो यह व्यक्ति की मौत का कारण भी बन सकता है। संतोष की बात यह है कि ब्लैक फंगस का इलाज संभव है। हरियाणा सरकार ने कोरोना को एक अधिसूचित बीमारी घोषित किया है। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की अधिसूचना के बाद अब हरियाणा के सभी डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि ब्लैक फंगस का कोई भी मामला सामने आए तो उन्हें इसकी सूचना स्थानीय अस्पताल एवं सिविल सर्जन को देनी होगी।

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