कोर्ट के फैसले का सम्मान करे चण्डीगढ़ प्रशासन

Spread the love

चण्डीगढ़ 5 मई। चण्डीगढ़ के कर्मचारियों के दर्जनों संगठनों ने सुचारू रूप से तथ सस्ती बिजली देने के बावजूद मुनाफे में चल रहे चण्डीगढ़ बिजली विभग का निजीकरण रद्द करने की मांग करते हुए चण्डीगढ़ प्रशासन को इस मामले में माननीय पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा 16 फरवरी को दिये गये फैसले का सम्मान करने की नसीहत देते हुए कहा कि चण्डीगढ़ प्रशासन की ऐसी कौन सी मजबूरी है कि वह माननीय उच्च न्यायालय के भी आदेश को भी अनदेखा कर बिजली विभाग को निजीकरण को तेजी से निपटाने में लगा है। इतनी तेजी अगर प्रशासन कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ने में दिखाता तो सैकड़ों लोगों की जान बच सकती है। लेकिन लगता है प्रशासन को कोरोना से लड़ने की बजाय बिजली विभाग को निजी मालिकों को बेचने में ज्यादा दिलचस्पी व जरूरत है वो भी ऐसी हालत में जब पूरा देश निजी संस्थाओं की लूटतंत्र से तृस्त है तथा बिजली स्वास्थ्य, सफाई आदि सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्रों पर पूरी तरह आश्रित है, जिनके कर्मचारी जीजान से महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। इसलिए प्रशासन को अपनी हठठधर्मिता छोड़कर बिजली कर्मियों को फ्रन्टलाइन वॉरियर घोषित कर उन्हें उचित सम्मान देना चाहि तथ संसद द्वारा बिजली बिल 2021 को पास करने तक चण्डीगढ़ के बिजली विभाग का गैरकानूनी तौर पर किया जा रहा निजीकरण रोक देना चाहिए। प्रेस के नाम संयुक्त ब्यान जारी करते हुए फैड़रेशन के प्रधान रघबीर चन्द, महासचिव गोपाल दत्त जोशी, यूटी पावरमैन के प्रधान ध्यान सिंह, वाटर सप्लाई के प्रधान हरपाल सिंह महासचिव, राजेन्द्र कटोच, यूटी रोड़ के महासचिव बिशराम, एम सी रोड़ के महासचिव प्रेमपाल, एम सी मनीमाजरा के प्रधान नसीब सिंह, बालकल्याण परिषद के महासचिव बिहारी लाल ने कहा कि इस बात की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 16 फरवरी को दिये गये आदेश में कहा गया कि प्रशासन की कोई भी कार्यवाही कोर्ट के अन्तिम फैसले पर निर्भर होगी लेकिन प्रशासन इस बात की रत्तीभर भी परवाह किये बिना बिड़िग प्रोसेस को अन्तिम रूप दे चुका है जो कोर्ट की अवमानना है, आखिर ऐसी क्या वजह या कारण है कि प्रशासन को कोविड महामारी पर ध्यान देने की बजाय बिजली विभग को कोडियों के भाव बेचने में जयादा रूचि है। चण्डीगढ़ प्रशासन 100 प्रतिशत शेयर बेचकर एक सरकारी विभाग के कर्मचारियों के हितों के सााि खिलवाड केसे कर सकता है वह भी जब विभाग पिछले 5 साल से बिना बिजली की दर बढ़ाये मुनाफे में है व सरकार के खजाने में वृद्धि कर रहा है वह भी करीब 150 करोड से 250 करोड़ प्रतिवर्ष, विभाग का वार्षिक टर्नओवर रूपये 1000 करोड़ है। 157 करोड़ उपभोक्ताओं का जमा पैसा पड़ा है। कर्मचारियों का जीपीफंड रूपये 300 करोड़ है। इतना ही नहीं जमीन, सामान व भवनों का किराया सिर्फ व सिर्फ रूपये 1 महिना । प्रशासन की इस जल्दबाजी व र्कोअ की नापरवाही के पीछे बहुत बड़ा घोटाला तो नहीं इसकी देश की सबसे बड़ी ऐजन्सी से जांच की मांग करते हुए प्रशासन को चेतावनी दी कि अगर प्रशासन कोविड़-19 की आड़ में अपने गलत इरादों से पीछे नहीं हटा तो प्रशासन के अधिकारियों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी तथ बहुत विशाल जनसमूह का मुकाबला करना पड़ेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *