चंडीगढ़, 23 अप्रैल। दी इंटलेक्चुअल फारमर्स मंच (आईएफएम) ने केन्द्र सरकार और अंदोलन कर रहे किसानो से अपील की है कि वे एक बार फिर वार्ता कर तीनों कृषि बिलों के कानूनी प्रावधानों को समझ जून 2020 से चले आ रहे इस गतिरोध का अंत कर मानवीय और वित्तीय नुकसान का अंत करें।
शुक्रवार को प्रैस कल्ब में आयोजित एक प्रैस वार्ता के दौरान पत्रकारों को संबोधित करते हुये मंच के अध्यक्ष व पंजाब के पूर्व ऐडीशनल एडवोकेट जनरल जगमोहन सिंह सैनी ने बताया कि लगभग दस माह से चले आ रहे इस किसान आंदोलन द्वारा प्रदेश की वित्तीय स्थिति डगमगाने की कगार पर है जिसका सीधा नुकसान प्रदेश की जनता होगा जिसके लिये इसका समाधान जरुरी हो गया है। उन्होंनें बताया कि मंच प्रगतिशील किसानों, कानून से जुड़े प्रोफेशनल्स और शिक्षाविदों के इस समूह ने इस बिल पर गहन अध्ययन कर इसके प्रभावों को उजागर कर किसानों और केन्द्र सरकार के लिये सिफारिशें सुझाई हैं।
आईएफएम का मानना है कि फामर्स प्रोडयूस ट्रेड एंड कामर्स एमेंडमेंट एक्ट 2020 किसानों के लिये खुली मंडी के साथ साथ मौजूदा मार्केट सिस्टम में अपने उत्पाद बेचने का विकल्प रखा है। एक्ट मे यह नहीं कहा गया है कि मंडी खत्म कर दी जायेगी जिससे की स्पष्ट है कि सरकार मंडी सिस्टम को जारी रखने में कानूनी रुप से बाध्य है।
फामर्स इम्पावरमेंट एंड प्रीक्योरमेंट एग्रीमेंट एक्ट 2020 के प्रावधान सुनिश्चिित करते हैं कि काॅनट्रेक्ट फसल पर लागू होता है जमीन पर नहीं, इसलिये किसानों की जमीन पूरी तरह सुरक्षित है। मंच ने अपने अध्ययन में पाया है कि गत कई दशकों से पंजाब में काॅनट्रेक्ट फार्मिंग शुगर मिल के माध्यम होती है परन्तु अभी कोई भी भूमि कोई जबरन कब्जे का मामला दर्ज नहीं हुआ है। इस संदर्भ में कानून और प्रथा में कोई बदलाव नहीं आयेगा।
दी एसेनश्यिल कोमोडिटी एमेंडमेंट एक्ट 2020 अंतर्गत सरकार को प्राईज कंट्रोल मूल्य नियंत्रण पर कानूनी अधिकार है यदि वे एक निश्चित सीमा तक पहुंचते हैं। भारत जैसे सरप्लस प्रोडयूस मार्केट में व्यापारी जमाखोरी नहीं कर सकेंगें। इस संशोधन को कोल्ड स्टोरेज खोलने के लिये निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिये डिजाईन किया था ताकि किसानों की उपज बर्बाद न हो। यह पंजाब की गेहूं और चावल की फसल को प्रभावित नहीं होने देगी।
आईएफएम ने आंदोलन के दौरान 300 किसानों की गई जानें पर भी चिंता व्यक्त की है। सैनी ने बताया कि किसानों का श्रेय इसलिये भी जाता है क्योंकि इस भव्य आंदोलन को किसानों ने शांतिपूर्ण बनाये रखा। आईएफएम ने किसानों के हित में सभी एक्ट की विस्तृत कानूनी समीक्षा की सिफारिश की है जिसका उद्देश्य यह होना चाहिये कि उपज के बेहतर आय के लिये विकल्प उपलब्ध कराते समय उनके हितों की रक्षा की जा सके ।
आईएफएम ने सरकार से आग्रह किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की प्रणाली को जारी रखने का आश्वासन दिया जाये क्योंकि पिछले कई दशकों से यह अनरिटन नार्म (अलिखित मानदंड) है । यह घाटे में कमी लाने के लिये मदद करेगा।
मंच ने यह भी मांग की है कि राज्य सरकार किसानों की कर्ज माफी की प्रक्रिया को गति दे जैसा कि वर्ष 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के चुनाव जनादेश के दौरान वादा किया गया था।
मंच ने कृषि सुधारों को गति देने के लिये केन्द्र सरकार से राज्यों में कृषि संबंधी बुनियादी ढ़ांचे और कारखाने के निर्माण के लिये उचित कार्यवाही करने का आग्रह किया है।
राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा इस तरह की कार्यवाही यह सुनिश्चित करेगी कि नये कानूनों से अधिकतम लाभ अर्जित किये जायें। अंत में आईएफएम ने केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और किसानों से अपील की है कि वे राज्य और किसान समुदाय के हितों को ध्यान में रखते हुये लोजिकल और लीगल तरीके से स्थिति पर चर्चा कर इस गतिरोध का अंत करें।