समालखा, 13 अगस्त। स्वतंत्रता दिवस का इंद्रधनुष जब भारतीय आसमान और स्वतंत्र नागरिकों के दिलों में हिलोरें मार रहा था तब देश विभाजन का दंश झेल रहे 60 लाख भारतीय अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत थे। यह कहना है केंद्रीय विद्यालय बिहोली, समालखा के शिक्षक परामर्शदाता राजेश वशिष्ठ का। विशिष्ठ ने जारी एक बयान में कहा कि वह विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक था। लोग घर-बार त्याग कर, रोज़ी रोटी भूल कर सिर्फ़ जान बचाने के लिए दौड़ रहे थे। वह विभाजन का दर्द और हिंसा भी देश की स्मृति में गहराई से अंकित है। आज़ादी के पश्चात स्वतन्त्र भारतीयों को एक अनचाहा आघात झेलना पड़ा। उनके इस बलिदान को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए 14 अगस्त को आज़ादी की विभीषिका दिवस मनाया जाता है।
अँग्रेज़ों ने जाते जाते कपटी चाल चलते भारत को पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान तथा भारत मे बाँट दिया। इस दौरान लगभग 10 लाख लोग न सिर्फ अपनी जान गँवा बैठे बल्कि एक स्थापित संस्कृति को तहस नहस करने का कुत्सित प्रयास किया।
मुझे विभाजन की त्रासदी झेलने वाले कुछ परिवारों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जो सुना वह रोंगटे खड़े करने वाला था। भूषण अरोरा मात्र छह वर्ष के थे। उनके पिता जी की पाकिस्तान में किताबों की दुकान थी। बँटवारे का सुनते ही पिता जी ने सारे परिवार को बुला कर कहा कि हम जिंदा रहें या ना रहें लेकिन धर्म ग्रथों का अपमान नहीं होना चाहिए। परिवार ने मिलकर दुकान में रखे धर्म ग्रंथ तालाब में डुबो दिए। दूसरा परिवार ऐसा था जो मार काट का शिकार हो रहा था तब परिवार के एक सदस्य ने राज वर्मा नाम की लड़की को संदूक में बंद कर दिया।एक सप्ताह बाद जब वह संदूक किसी विस्थापित के हाथ लगा तो मृत्यु शैया पर पड़ी उस नवजात को नया जीवन मिला। ऐसे 60 लाख परिवार थे।
ऐसे विभाजन को स्वीकार करने वाले लोगों को किस रूप में निरूपित किया जाए, इसे इतिहासकारों तथा भावी पीढ़ी के विवेक पर छोड़ देना उचित होगा परंतु सजग राष्ट्र अपने इतिहास से शिक्षा लेकर पुरानी भूलों को फिर से न दुहराने का प्रबंध करने के भावी पीढ़ी को जागरूक करे , यह नितांत आवश्यक है।
एक और जहाँ लोग मिठाई का स्वाद ले रहे थे तो सरहद के पार से आने वाले आत्मा और शरीर पर एक ऐसी कड़वाहट पी रहे थे जो शब्दों को बयान करने वाली कलम रो पड़े । देश के बीच बंटवारे की लकीर खिंचते ही रातों रात लाखों लोग अपने ही देश में बेगाने और बेघर हो गए । यह मात्र भौगोलिक सीमा का बंटवारा नहीं था अपितु लाखों वर्षों से विश्व का मार्गदर्शन करने वाली ऋषि मुनियों की पावन धरती की संस्कृति को आघात पहुँचाने का प्रयास हुआ।
विभाजन के दौरान द्वारा सही गई यातना एवं वेदना का स्मरण दिलाने के लिए 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’के रूप में घोषित आज का दिन अखंड भारत का वसुधैव कुटुम्ब का नारा पुनर्जीवित करने के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस, “सामाजिक विभाजन, वैमनस्यता के जहर को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तीकरण की भावना को और मजबूत करने की आवश्यकता की याद दिलाए। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी।”
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर कृतज्ञ भारतीय, मातृभूमि के उन सपूतों को नमन करता है जिन्हें हिंसा के उन्माद में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी तथा हर घर तिरंगा लहराता प्रत्येक भारतीय संकल्प ले कि इस तिरंगे की ख़ातिर हुए बलिदान का सम्मान करे तभी आज़ादी का अमृत महोत्सव अपने मुकाम पर पहुँचेगा।
देश विभाजन का दंश झेल रहे 60 लाख भारतीय: वशिष्ठ
