चण्डीगढ़ 01 अप्रैल। प्राचीन वैदिक पद्धति और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक से ईजाद की गई तकनीकों का प्रयोग कर दिव्यांग व्यक्तियों को हर कार्य के लिए सक्षम बनाया जा सकता है जिससे वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ कर राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। यह बात हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य ने वीरवार को राजभवन में न्यूरो सांइटिफिक पद्धति का डेमों देखने उपरान्त कही। इस पद्धति का प्रदर्शन वीरवार को गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर जितेन्द्र कुमार ने दिया जो बे्रन एक्टीवेशन ट्रेनिंग पर काम कर रहे हैं। जितेन्द्र कुमार के साथ दो बच्चे रिया (13) और आर्यन (11) भी थे।
जितेन्द्र कुमार ने इस न्यूरो सांइटिफिक तकनीक के बारे में बताया कि इस तकनीक के माध्यम से दृष्टिहीन व्यक्ति बहुत ही आसानी से रंगों की पहचान कर सकता है। इस तकनीक की खोज़ भारतीय वैदिक परम्परा और आधुनिक वैज्ञानिक के सहयोग से की गई है। ऋग्वेद में उदृत नादयोगा और यजुर्वेद में उदृत गहन ध्यान पद्धति से ही एक दृष्टिहीन व्यक्ति बहुत आसानी से रंगों की पहचान कर लेता है। इस तकनीक के सहयोग से सामान्य बच्चों में भी एकाग्रता बढ़ती है। जिससे वे पढ़ाई में और अधिक अच्छा कर पाते हैं। उन्होंने बताया कि इस थैरेपी का प्रयोग करने से आम आदमी की याद्दाश्त, एकाग्रता और मानसिक संतुलन बेहतर होता है। इसी वजह से इसको तीसरा नेत्र भी कहा गया है।
राज्यपाल आर्य ने कुमारी रिया और आर्यन द्वारा दिए गए डेमोस्टरेशन को देखा। रिया और आर्यन दोनों बच्चों ने आंख बंद कर किसी भी पुस्तक के लेखक, प्रकाशन और विषय वस्तु के बारे में बताया। इस पर आर्य ने जितेन्द्र कुमार और दोनों बच्चों को शुभकामनाएं दी।