चंडीगढ़ 20 मार्च। साइंस सिटी ने पहली बार 20 मार्च को वैविनार के माध्यम से विश्व गौरैया दिवस का आयोजन किया। जिसमें मोहम्मद दिलावर पहले मुख्य वक्ता बने। जिन्होंने गौरेया पक्षी के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी । उन्होंने कहा कि भारत में पांच प्रकार की गौरैया पक्षी पाए जाते हैं उन्होंने कहा कि पांच प्रकार में से चार गौरैया भारत में ही रह रहे हैं जबकि एक प्रवासित हो चुकी है। उन्होंने कहा कि गुरैया की एक प्रजाति घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिक) जो हिंदुस्तान में बड़े पैमाने पर पाई जाती है। गौरैया को बचाने के लिए हमें बक्से, पक्षी भक्षण, पौधों लगाकर और रासायनिक कीटनाशकों तथा उर्वरकों के उपयोग को कम करके हम इन गौरैया चिड़िया को बचा सकते हैं। उन्होंने मानवता को बचाने के लिए गौरैया को बचाने पर जोर दिया है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की समन्वयक गीतांजलि कंवर ने कहा कि पक्षियों की लगभग पचास प्रजातियां हैं जो मानव आवास के सबसे करीब रहती हैं। इन पक्षियों में बुलबुल, गौरैया, कबूतर, वारब्लर, तोते आदि शामिल हैं। ऐसे पक्षियों को बर्डहाउस सुरक्षित रहने और प्राकृतिक योग्य लगते हैं। हमें इनके अस्तित्व को बचाने के लिए प्राकृतिक रूप से इमारतों एवं घरों में ऐसे वर्डहाउस का निर्माण करना होगा, जिसमें यह आसानी से रह सकें।
इस अवसर पर बोलते हुए विज्ञान सिटी की महानिदेशक डॉ. नीलिमा जेरथ ने कहा कि गौरैया या पासेर डोमेस्टिकस (घरा दी चिड़ी) एक ऐसा पक्षी है, जिसके साथ हम सबसे बड़े हुए हैं। चहक कर जो सूर्योदय और सूर्यास्त पर अभिवादन करता था, घड़ी की तरह अच्छा था लेकिन धीरे-धीरे और निश्चित रूप से इन छोटे रमणीय और अतिसक्रिय पक्षियों की बोली हमारे घरों और शहरों से दूर होती जा रही है। 1990 के दशक से इन को बचपाने एवं लोगों को जागरूक करने का हमारा छोटा सा प्रयास है। इसके अलावा, प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है और सही मायने में, क्योंकि ये पक्षी इन वास्तविक पक्षियों को उनके वास्तविक आवासों में पुनर्स्थापित करने के हमारे गंभीर संरक्षण प्रयासों के लायक हैं।
साइंस सिटी कपूरथला के निदेशक डॉ. राजेश ग्रोवर ने कहा कि गौरैया की घटती आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाना बहुत जरूरी है नहीं तो हम अपनी अगली पीढ़ी की केवल कहानियों में सुनाएंगे कि एक छोटी सी चिड़िया थी जिसे गौरैया कहा जाता था।