करनाल, 11 जनवरी। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य आज भी बरकरार है। तमाम महत्वपूर्ण सबूत और दस्तावेजों के बावजूद उनकी मौत के पीछे के कारणों को सामने नहीं आने दिया गया। शरीर से एकदम तंदुरुस्त और फिट व्यक्ति की अचानक हृदयाघात से मृत्यु हो जाना कई सवाल खड़े करता है जो आज तक अनुत्तरित हैं। इस सच से पर्दा उठना चाहिए। यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कही।
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए डॉ. चौहान ने एक लाइव कार्यक्रम में कहा कि वर्ष 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद लाल बहादुर शास्त्री पूरे देश के हीरो बन चुके थे। अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद भारत पर इस युद्ध को समाप्त करने के लिए समझौता करने का दबाव पड़ने लगा था। इसके लिए उन्हें रूस बुलाया गया था। समझौता वार्ता के दौरान शास्त्री जी ने सभी शर्तें मान लीं, लेकिन वह युद्ध में जीती गई जमीन पाकिस्तान को लौटाने के लिए तैयार नहीं थे। उन पर दबाव बनाकर 10 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए गए। इसके कुछ घंटे बाद ही 11 जनवरी 1966 की रात लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि मृत्यु के बाद जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो उनके शरीर पर घाव के निशान देखे गए थे और शरीर नीला पड़ चुका था। शास्त्री जी के परिजनों द्वारा जहर देने की आशंका व्यक्त करते हुए शव के पोस्टमार्टम की मांग की गई थी। परिजनों की मांग को दरकिनार करते हुए पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। इतना ही नहीं, शास्त्री जी की मृत्यु की जांच के लिए गठित राजनारायण कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जिससे कोई निष्कर्ष निकाला जा सके। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि देश की संसद की लाइब्रेरी में शास्त्री जी की मौत की जांच का कोई रिकॉर्ड ही मौजूद नहीं है। उपरोक्त तथ्य मौत पर संदेह करने का पुख्ता आधार प्रदान करते हैं।
शास्त्री जी के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विपरीत लाल बहादुर शास्त्री एक अत्यंत सामान्य पृष्ठभूमि से आते थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 में यूपी के मुगलसराय में हुआ था और 11 जनवरी 1966 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। वह मात्र 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि शास्त्री जी का व्यक्तित्व अत्यंत दिव्य, सादगीपूर्ण और उच्च आदर्शों से परिपूर्ण था। बाल्यावस्था में ही उन्हें पढ़ने के लिए चाचा के पास भेज दिया गया था जहां उन्हें पढ़ाई के लिए कई कोस पैदल चलना पड़ता था। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए उन्होंने मात्र 16 वर्ष की आयु में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और 17 वर्ष की आयु में जेल चले गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान लाल बहादुर शास्त्री को 4 वर्ष तक जेल में रहना पड़ा वर्ष 1946 में उन्हें जेल से रिहा किया गया।
भाजपा प्रवक्ता डॉ. चौहान ने कहा कि 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही शास्त्री जी को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उस समय देश अनाज के भीषण संकट से जूझ रहा था। इसके मद्देनजर अनाज की कमी को पूरा करने के लिए शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया और लोगों से एक शाम भूखे रहने की अपील की।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस का यह दुर्भाग्य है कि दिव्य व्यक्तित्व वाले अपने महान नेताओं को पार्टी ने उचित स्थान कभी नहीं दिया। सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभभाई पटेल ऐसे ही नेताओं में से थे। नेहरू के कारण सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था और सरदार वल्लभभाई पटेल को भी प्रधानमंत्री का पद छोड़ देना पड़ा था। महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू की खातिर सरदार वल्लभ भाई पटेल की राजनीतिक बलि क्यों ली, यह भी आज तक एक रहस्य है।
लाल बहादुर शास्त्री की मौत के रहस्य से पर्दा उठे: डॉ. चौहान
