पंजाब से भाजपा को बहुत उम्मीदें, लेकिन कांग्रेस के लिए पंजाब एक बड़ी चुनौती

पंजाब से भाजपा को बहुत उम्मीदें, लेकिन कांग्रेस के लिए पंजाब एक बड़ी चुनौती
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कपूरथला, 11 जनवरी। पंजाब सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनावों का ऐलान हो गया है। इन पांच में से चार राज्यों में भाजपा की सरकार है। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को जहां केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिये 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व पहली महत्वपूर्ण परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं, इनके नतीजे संयुक्त विपक्ष का स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता होने के कांग्रेस के दावे के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे।
पंजाब में कांग्रेस खुद सत्ता में है। भाजपा के लिए, 10 और 14 फरवरी को होने वाले मतदान के पहले दो चरण शायद सबसे चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हीं में पंजाब और जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट पड़ेंगे, पंजाब से भाजपा को बहुत उम्मीदें है। लेकिन कांग्रेस के लिए पंजाब एक बड़ी चुनौती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब में ही कांग्रेस अपने दमखम के साथ सरकार में थी। काफी विवादों के बाद पार्टी ने अमरिंदर सिंह को किनारे कर चरणजीत सिंह चन्नी को नेतृत्व सौंपा। पार्टी चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरने वाली है। हालांकि उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती वहां आम आदमी पार्टी है। कांग्रेस हर हाल में पंजाब में अपनी सरकार को बरकरार रखना चाहती है। जबकि आम आदमी पार्टी दिल्ली के बाहर दूसरे राज्यों में अपनी सत्ता की सपने संजोए हुए है।
पंजाब चुनाव में ड्रग्स एक बड़ा मसला है और सभी पार्टियां इसे चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उतरने जा रही है। अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी बनाकर भाजपा के साथ चुनावी मैदान में है। ऐसे में यह चुनाव उनके लिए भी चैलेंज रहने वाला है। पंजाब में भाजपा एक मजबूत कद के साथ चुनाव में उतरेगी। देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में मिली करारी शिकस्त के बाद भाजपा को इन राज्यों से काफी उम्मीदें हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में अगर अपना दबदबा कायम रखना है तो भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सरकार को बचाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुछ खास सफलता नहीं मिल पाई है। झारखंड में उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा। महाराष्ट्र में गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरने वाली भाजपा को चुनाव बाद बड़ा झटका लगा। हरियाणा में 2014 के मुकाबले 2019 में सीटों की संख्या काफी कम रही। बंगाल में पार्टी को काफी उम्मीदें थी लेकिन वह पूरी नहीं हो सकी। असम, बिहार और पुडुचेरी में भाजपा को सफलता जरूर हाथ लगी। यही कारण है कि माना जा रहा है कि इन विधानसभा चुनावों में पार्टी पूरी दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरना चाहेगी।कहते हैं कि अगर दिल्ली की सत्ता में आपको अपना दबदबा कायम रखना है तो उत्तर प्रदेश में आपको जीत हासिल करना बेहद जरूरी है। लखनऊ के रास्ते ही दिल्ली तक पहुंचा जा सकता है। यही कारण है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में हर हाल में अपनी सत्ता को बरकरार रखना चाहती है। इसी वजह से पार्टी का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश पर है।
उत्तर प्रदेश में पिछले 30 साल से ज्यादा के इतिहास को देखें तो कोई भी पार्टी लगातार दो बार सत्ता में नहीं आई है। योगी आदित्यनाथ कहते है कि हम रिकॉर्ड तोड़ने के लिए ही आए है। 2014 के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा का दबदबा रहा है। 2017 और 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने यहां कमाल किया। उत्तर प्रदेश में अगर पार्टी जीतती है तो कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज पर भी मुहर लगेगा। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा इस चुनाव में भी बाजी मार लेती है तो मोदी सरकार की राजनीतिक पूंजी में काफी इजाफा हो सकता है और केंद्र की सरकार आगे कई बड़े कदम भी उठा सकती है। वर्तमान में देखे तो कृषि कानूनों का मुद्दा उत्तर प्रदेश में ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है लेकिन कहीं ना कहीं चुनाव में यह बड़ा रोल अदा कर सकता है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने हिंदुत्व के रथ को भी आगे बढ़ाना चाहती है। योगी आदित्यनाथ की सरकार की छवि भी ऐसी है कि चुनाव अपने आप में ध्रुवीकृत हो सकता है। अगर यूपी के चुनाव में भाजपा को नुकसान होता है तो हिंदुत्व की धारा कमजोर पड़ सकती है और यही कारण है कि भाजपा पूरे दमखम के साथ राम मंदिर जैसे मसले को उठा रही है। पार्टी सवर्ण और ओबीसी को लामबंद करने की कोशिश में है ताकि चुनावी फायदा उठाया जा सके। राजनीतिक लिहाज से देखें तो यह तीनों राज्य छोटे जरूर हैं लेकिन सभी पार्टियों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है। इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है।
पूर्वोत्तर में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए भाजपा मणिपुर में पूरा दमखम लगा रही है। कांग्रेस भी मणिपुर में पार्टी को टक्कर देने की कोशिश में है। गोवा में भाजपा सरकार को पटखनी देने के लिए कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी चुनावी मैदान में है। जबकि उत्तराखंड में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। जानकारी के मुताबिक आम आदमी पार्टी के राज्य में चुनावी मैदान में उतरने के बाद मुकाबले दिलचस्प जरूर हो सकते है। भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर कम करने की जरूर कोशिश की और उसे उम्मीद है कि पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में एक बार फिर यहां कमल खिलेगा।

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