चंडीगढ़, 10 जनवरी। भारतीय अध्यात्म और संस्कृति को विश्व में अभूतपूर्व पहचान दिलाने का सबसे बड़ा श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह हैं स्वामी विवेकानंद। प्रेरणा के अपार स्रोत स्वामी विवेकानंद की कही एक-एक बात आज भी युवाओं को ऊर्जा से भर देती है। यह कहना है पं मुनीश तिवारी का।
पं मुनीश तिवारी ने जारी एक बयान में कहा कि मात्र 39 साल के छोटे से जीवन में ही स्वामी विवेकानंद ने पूरे दुनिया पर भारत और हिंदुत्व की गहरी छाप छोड़ी। 1893 में शिकागो में दिया गया भाषण आज भी गर्व से भर देता है। भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, सन् 1863 को हुआ। बचपन में उन्हें नरेंद्र कहकर बुलाया जाता था। वह कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत वह सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए। उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग हैं जो आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उनकी शिक्षाएं हमारा जीवन बदल सकती हैं।
स्वामी जी कहा करते थे कि कैसी भी समस्या सामने आए उसका डटकर सामना करो। ऐसा करने पर बहुत सी समस्याओं का समाधान हम अपने स्तर पर ही कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद का व्यक्तिगत जीवन साधारण था, लेकिन जब वे किसी विषय पर गंभीरता से बात करते थे या फिर भाषण देते थे, तो लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाया करते थे। स्कूल के दिनों में एक रोज वह अपनी कक्षा के छात्रों से बात करने में मशगूल थे, लेकिन उनका ध्यान सामने पढ़ा रहे अध्यापक पर भी था। अध्यापक को महसूस हुआ कि बच्चे पढ़ने के बजाए बातें करने में व्यस्त हैं, तब उन्होंने बच्चों से सवाल पूछना शुरू कर दिया। सबसे पहले नरेंद्र से शुरुआत की गई। उनकी स्मरण शक्ति तीव्र थी और वे बीच-बीच में पढ़ाई पर गौर भी कर रहे थे। इसलिए नरेंद्र ने सभी सवालों का जवाब सही-सही दे दिया। यह देखकर अध्यापक ने उन्हें बैठने का निर्देश दिया और अन्य छात्रों से सवाल पूछने लगे। बाकी छात्रों का ध्यान बातों में होने की वजह से एक भी छात्र सवाल का सही सही उत्तर नहीं दे सका। अध्यापक ने सभी बच्चों को हाथ ऊपर कर खड़ा रहने का निर्देश दिया। इस पर नरेंद्र ने कहा, क्षमा करें गुरु जी! मेरी वजह से सभी छात्र दंड के पात्र बने हैं। सजा का हकदार मैं ही हूं। यह सुनकर अध्यापक भी हैरान रह गए।
बालक नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की उनमें प्रबल लालसा थी। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। कुछ समय बाद रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र तर्क करने के विचार से उनके पास गए लेकिन उनके विचारों और सिद्धांतों से प्रभावित हो उन्हें अपना गुरु मान लिया। परमहंस जी की कृपा से इन्हें आत्म-साक्षात्कार हुआ जिसके फलस्वरूप कुछ समय बाद वह परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।
जब भी स्वामी विवेकानंद के विषय में बात होती है, तो शिकागो की धर्म संसद में उनके द्वारा दिए गए भाषण के विषय में चर्चा जरूर की जाती है क्योंकि यही वह क्षण था जब स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदू धर्म के विषय में लोगों का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।
उन्होंने बताया की जिस तरह भिन्न-भिन्न नदियां अंत में समुद्र में ही मिलती हैं, उसी प्रकार विश्व के सभी धर्म अंत में ईश्वर तक ही पहुंचाते हैं और समाज में फैली कट्टरता तथा सांप्रदायिकता को रोकने के लिए, हम सबको आगे आना होगा क्योंकि बिना सौहार्द तथा भाईचारे के विश्व तथा मानवता का पूर्ण विकास संभव नही है।
11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शिकागों में आयोजित धर्मसभा में स्वामी जी ने हिंदुत्व की महानता को प्रतिस्थापित करके पूरे विश्व को चौंका दिया। उनके व्याख्यानों को सुनकर पूरा अमेरिका ही उनकी प्रशंसा से मुखरित हो उठा। न्यूयार्क में उन्होंने ज्ञान योग व राजयोग पर कई व्याख्यान दिये। उनसे प्रभावित होकर हजारों अमेरिकी उनके शिष्य बन गये। उनके लोकप्रिय शिष्यों में भगिनी निवेदिता का नाम भी शामिल है।
वे राष्ट्र निर्माण से पहले मनुष्य निर्माण पर बल देते थे। अतः देश की वर्तमान राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए देश के युवा वर्ग को स्वामी विवेकानंद एवं उनके साहित्य का गहन अध्ययन करना चाहिये। युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अवश्य ही लाभान्वित होगी। स्वामी विवेकानंद युवाओं को वीर बनने की प्रेरणा देते थे। युवाओं को संदेश देते थे कि बल ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु। स्वामी जी ने अपना संदेश युवकों के लिए प्रदान किया है। युवा वर्ग स्वामी जी के वचनों का अध्ययन कर उनकी उद्देश्य के प्रति निष्ठा, निर्भीकता एवं दीन दुखियों के प्रति गहन प्रेम और चिंता से अत्यंत प्रभावित हुआ है।
“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।”अर्थात उठो जागो और तब तक ना रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए ।
स्वामी विवेकानंद के यही आदर्श आध्यात्मिक हस्ती होने के बावजूद युवाओं के लिए एक बेहतरीन प्रेरणास्त्रोत सिद्ध करते हैं। युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के अतिरिक्त अन्य कोई अच्छा मित्र, दार्शनिक एवं मार्गदर्शन नहीं हो सकता।
उनके इन्हीं कार्यों के लिए स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा गया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं; जैसे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया।
उनके शिष्यों के अनुसार 4 जुलाई 1902 को वह अपने दिनचर्या का पालन करते हुए ध्यान में लीन थे और इसी ध्यान के दौरान उन्होंने अपने ब्रह्मरंध्र को भेदकर महासमाधि ले ली।
स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अंदर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे। 1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद जयंती पर 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
हिंदुत्व की गहरी छाप छोड़ युवाओं में ऊर्जा का संचार करने वाले थे स्वामी विवेकानंद: पं मुनीश तिवारी
