चंडीगढ़, 15 नवंबर। किसी भी देश, सभ्यता और संस्कृति का अस्तित्व और गौरव उसके स्वतंत्र रहने पर निर्भर करता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता की धारा को प्रवाहित रखने का कार्य देश की मातृशक्ति ने सदियों से अपने कंधों पर संभाले रखा है।
केंद्रीय विद्यालय संगठन शिक्षक-परामर्शदाता जसप्रीत कौर का कहना है कि चाहे क्रांतिकारियों के मध्य संदेश पत्र और हथियारों के वाहक के रूप में कार्य, क्रांतिकारियों को आश्रय देना, विदेशी कपड़ों की होली जलाना, शराब की दुकानों पर धरना देना, अंग्रेजी शासन की नीतियों का विरोध या फिर स्वयं गुलामी की जंज़ीरों के ख़िलाफ कलम अथवा हथियार उठाना हो, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की बेला में भारतीय महिलाओं ने भरपूर सहयोग तथा मार्गदर्शन किया है।
एक समय था जब ब्रिटिश उपनिवेश भारत में यूरोपियन क्लब के बाहर एक तख्ती पर लिखा होता था डाग्स एंड इंडियंस आर नाट अलाउड अर्थात कुत्तों और भारतीयों का आना सख्त मना है यानी भारतीय अपने ही देश में स्वेच्छा से हर जगह नहीं आ जा सकते थे और कुत्तों से तुलना का कड़वा अपमान भी सहना पड़ता था।
चटगांव (वर्तमान बांग्लादेश) में पांच मई 1911 को अंग्रेजों की अमानवीय नीतियों के विरोध में हथियार उठाने वाली बंगाल की प्रथम वीरांगना प्रीतिलता वादेदार का जन्म हुआ। बचपन से ही प्रतिभाशाली प्रीतिलता बारहवीं कक्षा में पूरे ढाका कालेज में प्रथम स्थान पर रहीं परंतु अँग्रेज़ अधिकारियों ने उनकी डिग्री पर रोक लगा दी।
उन दिनों विद्यालयों में बालचर संस्था का गठन होता था जिसमें सेवाभाव और अनुशासन के साथ ब्रिटिश सम्राट के प्रति निष्ठा का प्रशिक्षण दिया जाता था। इसी कुत्सित नीति के कारण प्रीतिलता के कोमल ह्रदय में क्रांति के बीज प्रस्फुटित हुए तथा वह क्रांतिकारी मास्टर सूर्य सेन के संपर्क में आईं और चटगांव रिवाल्यूशनरी पार्टी की सक्रिय सदस्य बन गईं।
23 सितंबर 1932 को मास्टर सूर्य सेन ने गुलामी के प्रतीक चटगांव के यूरोपियन क्लब पर प्रीतिलता के नेतृत्व में हमले की योजना बनाई। यूरोपियन क्लब की खिड़की पर बम लगाया गया जिसमें करीब 13 अंग्रेज जख्मी हो गए I प्रीतिलता को भी गोली लगी। साथी क्रांतिकारियों को भागने का आदेश देते हुए प्रीतिलता ने स्वयं पोटेशियम साइनाइड खाकर सर्वोपरि बलिदान देकर ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला डाली।
सेनानी प्रीतिलता ने अपनी लिखी एक चिट्ठी में अँग्रेज़ी हुकूमत को जड़ से उखाड़ने तथा स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की प्रेरणा का ज़िक्र किया था कि – आज महिलाओं ने एक दृढ़ संकल्प लिया है कि वे पृष्ठभूमि में नहीं रहेंगी I मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी बहनें अब यह महसूस नहीं करेंगी कि वे कमजोर हैं। अपने दिल में यह आशा लिए मैं आत्म बलिदान के लिए आगे बढ़ रही हूँ I महिला तथा पुरुष एक ही लक्ष्य के लिए आगे बढ़ रहे हैं तो दोनों में फर्क क्यों ? चटगांव शस्त्रागार कांड के बाद जो रास्ता अपनाया जाएगा, वह भावी संग्राम का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगा।
महिलाओं को नेपथ्य से केंद्र में आज़ादी की धुरी बनाने वाली प्रीतिलता वादेदार ने देश की स्वाधीनता की खातिर मात्र 21 वर्ष की आयु में मृत्यु का आलिंगन करते हुए स्वतंत्रता की लौ को संपूर्ण देश में फैला दिया।