साधना पूर्वक जीवन जीने से सुख की प्राप्ति होती है: स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती

चण्डीगढ़, 30 अक्टूबर। आर्य समाज, सेक्टर 7बी, चण्डीगढ़ के 63वें वार्षिक उत्सव के दूसरे दिवस के दौरान करनाल से पधारे स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती ने कहा कि मनुष्य कर्मशील एवं सामाजिक प्राणी है। सामाजिक परिवेश में मानवीय जीवन चक्र में परिस्थिति एवं वातावरण हर पल बदलता रहता है। मनुष्य संघर्ष करते हुए समस्या का समाधान न मिलने पर दुख से ग्रस्त हो जाता है। भौतिक सुखों की अंधी दौड़ ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, आक्रोश के कारण अपने आप को दुखों से ग्रस्त कर लेता है। वेदानुकूल जीवन जीकर भयमुक्त एवं विषाद अर्थात दुख से दूर हो सकते हैं। भय, असुरक्षा का भाव दुखों का मूल कारण है। भय से चिंता, असहनशीलता अविश्वास, ईर्ष्या, द्वेष आदि का जन्म होता है। सत्संग, योग, ध्यान और साधना सार्थक जीवन जीने में सहायक होता है। ईश्वर विश्वासी होकर उमंग, उत्साह पूर्ण जीवन जीना चाहिए। सांसारिक साधन से दुख की प्राप्ति तथा साधना पूर्वक जीवन जीने से सुख की प्राप्ति होती है।  सुख की प्राप्ति होने पर प्रसाद की ओर बढ़ते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती जी कहते हैं कि जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उनका आदि मूल परमेश्वर है। बरेली से पधारे भानु प्रकाश शास्त्री ने मनमोहक भजनों की प्रस्तुति से उपस्थित आर्य जनों को आत्म विभोर कर दिया। प्रेस सचिव डॉ. विनोद शर्मा ने बताया कि पवित्र वेद मंत्रों से प्रतिदिन प्रातः काल यज्ञ, सत्संग और भजन भी हो होते हैं। रविवार को मुख्य कार्यक्रम है जो दोपहर तक चलेगा।

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