मुगलों को महान बताने वाले कर रहे कश्मीर फाइल्स का विरोध: डॉ. चौहान

करनाल, 16 मार्च। ‘कश्मीर फाइल्स’ का प्रदर्शन रोकने के लिए देश का एक विशेष समुदाय और पूरी लेफ्ट लिबरल लॉबी दुष्प्रचार पर उतर आई है। यह वही लॉबी है जिसने मुगल आक्रांताओ द्वारा भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए किए गए हिंदुओं के भयानक नरसंहार की घटनाओं को इतिहास से मिटाने की भरपूर कोशिश की और अकबर को महान बताया। इस्लामिक चरमपंथियों के क्रूर सत्य को मिटाने और दबाने की साजिश आजादी के बाद से ही जारी है। ‘कश्मीर फाइल्स’ इसकी नवीनतम कड़ी है। यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष और भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कही। वह फिल्म निर्माता विवेक रंजन अग्निहोत्री को मिल रही धमकियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।
डॉ. चौहान ने कहा कि देश का टुकड़े-टुकड़े गैंग अपनी असलियत खुल जाने के डर से परेशान है, इसलिए एक कड़वे सच को दबाने की कोशिश हो रही है। यह फिल्म कथित ‘गंगा जमुनी संस्कृति’, हिंदू- मुस्लिम भाईचारे और ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत एवं इंसानियत’ के फरेब से पर्दा हटाती है। उन्होंने कहा कि 90 के दशक में कश्मीर को एक स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए राज्य में जिहाद का नंगा नाच किया गया था। कश्मीर को काफिर विहीन करने के लिए हिंदुओं-सिखों का भीषण नरसंहार किया गया था। अपनी जान बचाने के लिए कश्मीरी हिंदुओं को वहां से पलायन करना पड़ा और अपने ही देश के अन्य राज्यों में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए। कश्मीर से एक पूरे धार्मिक समुदाय का सफाया कर दिया गया, उनकी घर संपत्ति को आग के हवाले कर दिया गया, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार और नृशंस तरीके से हत्या की गई, लेकिन न देश को इसकी खबर हुई न ही संयुक्त राष्ट्र संघ को। कश्मीर फाइल्स 32 सालों से दबे इस क्रूर सत्य को उजागर करती है और विस्थापित कश्मीरियों के दर्द को बयां करती है।
भाजपा प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि कश्मीर में जिहादियों की हैवानियत को दिखाने वाली आज तक कोई फिल्म नहीं बनी थी। कश्मीर फाइल्स रिलीज होने से घाटी में 32 साल पहले हुए हिंदुओं के भयानक नरसंहार की कई कहानियों से पर्दा हट गया है। यह फिल्म कश्मीर में पिछले 32 सालों से जारी इस्लामिक जिहाद का दस्तावेज है। कश्मीरी अलगाववादियों के खिलाफ बढ़ते जनाक्रोश और अपने चेहरे से नकाब हटता देख लेफ्ट-लिबरल खेमे में खलबली मची हुई है। इस्लामी जिहादियों द्वारा भारत में हिंदुओं के नरसंहार का सिलसिला मध्यकाल से ही जारी है। वामपंथी इतिहासकारों ने इसे हमेशा छिपाने की कोशिश की और पाठ्यक्रमों से इसे दूर रखा। न मोपला नरसंहार पर चर्चा हुई, न मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के आह्वान पर हिंदुओं की सामूहिक हत्याओं पर। महान सिख गुरुओं पर मुगलों द्वारा किए गए अमानवीय अत्याचार को भी इतिहास के पन्नों से मिटाने की कोशिशें की गई।
डॉ. चौहान ने कहा कि कश्मीर के सच को देश के सामने लाने की मुहिम में हरियाणा सरकार ने भी योगदान करते हुए ‘द कश्मीर फाइल्स’ को राज्य में टैक्स फ्री कर दिया है। इस फिल्म की लोकप्रियता और इसे देखने की होड़ से घबराकर कट्टरपंथी फिल्म निर्माता को जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं। लेफ्ट-लिबरल लॉबी फिल्म के खिलाफ दुष्प्रचार के तमाम हथकंडे अपना रही है।
आज से 32 साल पहले कश्मीरी अलगाववादियों ने वहां रहने वाले हिंदुओं को चेतावनी दी थी – रलिव, गलिव या चलिव। अर्थात या तो कश्मीर छोड़कर चले जाओ, इस्लाम कबूल कर लो या मारे जाओ। कश्मीरी हिंदुओं की नृशंश हत्या की कहानियां आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। इस्लामी जिहाद एक ऐसी सोच है जो अलगाववाद में विश्वास करता है। 1947 में देश का विभाजन भी इसी सोच का परिणाम था। उस वक्त भी सीमा के दोनों तरफ भारी नरसंहार हुआ था। उसी अधूरे एजेंडे को पूरा करने के लिए कश्मीर में आतंकवाद फैलाया गया। यह समुदाय जीवन के हर क्षेत्र में संविधान से इतर अपनी अलग व्यवस्था चाहता है। हिजाब से लेकर तीन तलाक और वक्फ संपत्ति कानून की मांग इसी एजेंडे के अलग-अलग रूप हैं। देश को इन ताकतों के खिलाफ एकजुट होना होगा।

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