साइंस सिटी ने “दरियाओं को बचाने के प्रयत्नों’ संबंधी अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर करवाया वेबिनार

साइंस सिटी ने “दरियाओं को बचाने के प्रयत्नों’ संबंधी अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर करवाया वेबिनार
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कपूरथला, 14 मार्च। पुष्पा गुजराल साइंस सिटी की ओर से दरियाओं को बचाने के प्रयत्नों संबंधी मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौके पर नदियों को संभालने व हमेशा चलती रखने के लिए की जाने वाली कार्यवाही संबंधी एक वेबिनार का आयोजन करवाया गया। अंतर्राष्ट्रीय नदियों को बचाने के लिए कार्य दिवस का इस बार का थीम “दरियाओं के अधिकार’ है। पंजा की अलग-अलग विद्ययक संस्थाओं से 100 से अधिक विद्यार्थियों व अध्यापकों ने भाग लिया।
इस मौके साइंस सिटी के डायरेक्टर डा.राजेश ग्रोवर ने कहा कि दरिया जहां हमे खेतीबाड़ी, घरेलू प्रयोग के लिए बिजली पैदा करने व उद्योगों के लिए जल की सप्लाई करते है, वहीं पर्यावरण संतुलन सेवाएं व जैविक विभिन्नता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। उन्होंने कहा कि यह सिद्ध हो चुका है कि दरियाओं के किनारे बसी सभ्यताओं व शहर जैसे कि वाराणसी, दिल्ली, लंदन, मास्को, रोम, बार्लिन, वाशिंगटन डीसी आदि इसी कारण ही विकसित, खुशहाल व कायम रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बहुभांति लाभ होने कारण दरियाओं का प्रबंध करने व पानी की सुरक्षा हमारी मौलिक जिम्मेवारी है। उन्होंने कहा कि दरियाओं की संभाल की 25वीं वर्षगांठ विश्व स्तर पर दुनिया में इस प्रति एकजुट होकर प्रयत्न करने की आवाज बुलंद करती है। संसार में नदियां जैविक विभिन्नता को जीवित रखने व बहाल करने के लिए बहुत अहम रोल अदा करती है। दरियाओं की प्रणाली धरती का सबसे बढ़िया जैविक क्षेत्र है।
राष्ट्रीय हाईड्रोलॉजी इंस्टीच्यूट रुढ़की की पर्यावरण हाईड्रोलॉजी डिवीजन के प्रभारी व विज्ञानी डा.आरपी पांडे मुख्य प्रवक्ता के तौर पर उपस्थित हुए। उन्होंने दरियाओं को हालात मूल्यांकन व पुनर्जीवित पर लेक्चर दिया। उन्होंने अपने लेक्चर दौरान बताया कि दरिया एक जल जीवी प्रणाली है। िसमें बहुत से जीव व निरजीव होते है और यह आपास में मिल कर पर्यावरण संतुलन को बनाए रखते है। भारत को बारिश में पूरा साल समय के साथ-साथ बहुत सी तबदीलियों का सामना करना पड़ता है। खेतीबाड़ी के अलावा अन्य जरुरतों के लिए पानी की बढ़ती मांग के साथ-साथ धरती के नीचे जल के दुरुपयोग से क्षेत्रीय व रिवायती जल स्त्रोतों को चलते रखने के लिए बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है। इसके परिणाम के रुप में न सिर्फ सूखे, अर्द्ध सूखे व सूखा क्षेत्र ही जल की कमी से जूझ रहे है। बल्कि वह क्षेत्र जहां सारा साल भारी बारिश होती है, वहां भी पानी की कमी पाई जा रही है। इसके अलावा जलगाहों, प्राकृतिक तालाब, छप्पड़ व तालाब आदि भी हममें से आलोप हो रहे है और ऐसी घटना दरियाओं के पानी के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उन्होंने पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रभावशाली हलों को लागू करने के साथ-साथ प्रदूषण कारण प्रदूषित हुए रिवायती जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने पर जोर दिया।

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