चंडीगढ़, 7 मार्च। भारत वर्ष एक सम्पन्न परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश है, जहां महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। ग्रामीण परिदृश्य में महिलाओं की बड़ी आबादी है। दुर्भाग्यवंश विदेशी शासनकाल में समाज में अनेक कुरीतियां व विकृतियां पैदा हुई, जिससे महिलाओं को उत्पीड़न हुआ।
आजादी के बाद महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा, लेकिन उनके सशक्तिकरण की गति दशकों तक धीमी रही। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हे आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है। विशेषकर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों, बैंकिंग सेवाओं और डिजिटलीकरण की सहायता से महिलाओं के सामाजिक और वित्तीय सशक्तिकरण की शुरुआत की जा सकती है।
भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हंै। भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं। अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए हंै।
2030 तक पृथ्वी को मानवता के लिए स्वर्ग समान जगह बनाने के लिए भारत सतत विकास लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ चला है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण करना सतत विकास लक्ष्यों में एक प्रमुखता है। वर्तमान में प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, समावेशी आर्थिक और सामाजिक विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है।
महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं। प्रसिद्ध अमेरिकी धार्मिक नेता ब्रिघम यंग ने ठीक ही कहा है कि जब आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं, तो आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं। जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं। इसलिए, यह इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ’’एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता‘‘ है।
भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है। आनंदीबाई गोपालराव जोशी (1865-1887) पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में दो साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक रही है। सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह किया। बॉक्सर एमसी मैरी कॉम एक जाना-पहचाना नाम है। हाल के वर्षों में, हमने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का प्रबंधन करते हुए भी देखा है – अरुंधति भट्टाचार्य, एसबीआई की पहली महिला अध्यक्ष, अलका मित्तल, ओएनजीसी की पहली महिला सीएमडी, सोमा मंडल, सेल अध्यक्ष, कुछ ओर नामचीन महिलाएं हैं, जिन्होनें विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
कोविड-19 के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में महिलाओं डाक्टरों, नर्सो, आशा वर्करों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व समाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की प्रवाह न करते हुए मरीजों को सेवाएं दी है। कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। भारत बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी शानदार भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। महिमा दतला, एमडी, बायोलॉजिकल ई, ने 12-18 वर्ष की आयु के लोगों को दी जाने वाली कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया। निस्संदेह, महिलाएं और लड़कियां समाज में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव की अग्रदूत हैं।
जैसा कि हम खुद को कोविड -19 के कारण हुई तबाही की पृष्ठभूमि में ष्बिल्ड बैकष् प्रक्रिया में शामिल करते है तों मुझे से लगता कि महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। छठी आर्थिक गणना के अनुसार, हमारे पास देश में 8.05 मिलियन महिला उद्यमी हैं। शॉपक्लूज, घर और रसोई, दैनिक उपयोगिता वस्तुओं की मार्केटिंग के लिए 2011 में राधिका आॅनलाई स्टार्ट -अप शुरू किया गया। यह यूनिकॉर्न क्लब में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला उद्यमी थीं। राजोशी घोष के हसुरा, स्मिता देवराह के लीड स्कूल, दिव्या गोकुलनाथ के बायजू और राधिका घई के ’शॉपक्लूज’ अन्य यूनिकॉर्न हैं, जो महिला स्टार्टअप की क्षमता के बारे में बहुत कुछ बयां करते है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए स्टैंड-अप इंडिया, और स्टार्ट-अप सम्बन्धि कई योजनाएं शुरू की हैं। अब एक महिला उद्यमिता मंच पोर्टल का गठन करना एक प्रमुख पहल है, जो नीति आयोग की एक प्रमुख पहल है। यह अपनी तरह का पहला एकीकृत पोर्टल है जो विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि की महिलाओं को एक पटल देता है और उन्हें कई प्रकार के संसाधनों, की सुविधा प्रदान करता है।
महिलाओं को उद्यमिता के क्षेत्रों मे पावं रखने के लिए महिला स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण है। अब महिलाओं ने पूरी उर्जा के साथ उद्यमिता के क्षेत्रों में पांव जमाए हैं। बैन एंड कंपनी और गूगल के अनुसार, महिला उद्यमी 2030 तक लगभग 150-170 मिलियन नौकरियां पैदा करेंगी। एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार, 2018-21 तक स्टार्टअप्स द्वारा लगभग 5.9 लाख नौकरियां पैदा की गईं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से शुरू से ही उद्यमिता के बीज बोने का सार्थक प्रयास किया जा चुका है।
हाल ही में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय महेंद्रगढ़ में आयोजित दीक्षांत समारोह में 24 छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। जिनमें से 16 लड़कियां थीं। यह सिर्फ एक विश्वविद्यालय की बात नहीं है। वे लगभग हर संस्थान में लड़कों से कहीं बेहतर कर रही हैं। उनमें उत्कृष्टता प्राप्त करने की तीव्र इच्छा और दृढ़ता है। ‘‘आजादी के अमृत महोत्सव‘‘ वर्ष के पहले भाग में ही केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 6-12 सितंबर के बीच केवल एक सप्ताह में 2614 स्वयं सहायता समूह के उद्यमियों को सामुदायिक उद्यम निधि का आठ करोड़ साठ लाख रुपये का ऋण प्रदान किया।
स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिलाएं न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की मजबुती में को भी योगदान दे रही है। सरकार के निरन्तर लगातार आर्थिक सहयोग से आत्मनिर्भर भारत के संकल्प में उनकी भागीदारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। पिछले 6-7 वर्षों में महिला स्वयं सहायता समूहों का अभियान और तेज हुआ है। आज देश भर में 70 लाख स्वयं सहायता समूह हैं। महिलाओं के पराक्रम को समझने की जरूरत है, जो हमें महिमा की अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी। आइए हम उन्हें आगे बढ़ने और फलने-फूलने में मदद करें। महिलाओं के सर्वांगीण सशक्तिकरण के लिए ’अमृत काल’ इन्हें समर्पित हो।