करनाल, 24 फरवरी। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आपसी विवादों की भी कमी नहीं है। भारत के हर नागरिक को न्याय सुलभ हो सके इसके लिए सरकार ने कई प्रावधान किए हैं। वर्ष 1987 में संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय विधिक सेवा अधिनियम भी इसी दिशा में उठाया गया कदम है। इस अधिनियम के तहत देश के अधिकतर नागरिकों को निशुल्क कानूनी सहायता देने का प्रयास किया जाता है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण इसी अधिनियम के तहत गठित की गई इकाइयां हैं जो जिला स्तर पर कार्य करती हैं। यह जानकारी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और करनाल की मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी एवं विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव सुश्री जसबीर कौर ने लाइव कार्यक्रम ‘ग्रामोदय वार्ता’ के दौरान दी। उन्होंने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 39ए सभी नागरिकों को न्याय उपलब्ध कराने की व्यवस्था करता है। लोक अदालत इन्हीं प्रयासों का एक आयाम है।
सीजेएम जसबीर कौर ने बताया कि देश की अदालतों में लाखों की संख्या में लंबित विभिन्न मामलों के बोझ को हल्का करने के उद्देश्य से लोक अदालतों का गठन किया गया। यह भारत की प्राचीन पंचायती न्याय प्रणाली का ही आधुनिक रूप है और उसी व्यवस्था को आगे ले जाने का प्रयास है। उन्होंने बताया कि लोगों को अदालती चक्कर से बचाने के लिए लोक अदालतों की रूपरेखा तैयार की गई है। इसे वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्र भी कहा जाता है। इन अदालतों में दोनों पक्ष अपनी रजामंदी से विवाद के निपटारे के लिए जाते हैं। लोक अदालतों में हुआ कोई भी फैसला अंतिम माना जाता है। इसलिए इसमें सिर्फ उन्हीं मामलों को लिया जाता है जो ज्यादा गंभीर श्रेणी के न हों और जिन्हें आपसी बातचीत के आधार पर सुलझाया जा सकता हो। जैसे पारिवारिक विवाद, संपत्ति विवाद, वैवाहिक विवाद या इसी प्रकार के अन्य मामले।
डॉ. चौहान और जसबीर कौर ने चर्चा के दौरान यह भी बताया कि लोक अदालतों में आमतौर पर वैसे मामलों को रखा जाता है जिनमें पुलिस स्टेशन में शिकायत तो दी गई हो, लेकिन मामला दर्ज न हुआ हो और दोनों पक्ष आपसी रजामंदी से मामला सुलझाने के लिए तैयार हों। इसे प्री लिटिगेटिव डिस्प्यूट कहा जाता है। इसके अलावा उन मामलों को भी लिया जाता है जिनमें छोटे-मोटे आपराधिक मामलों में एफआईआर दर्ज हो गई हो, लेकिन दोनों पक्ष कोर्ट में जाने से बचने के लिए लोक अदालत में मामला सुलझाना चाहते हों।
मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सुश्री जसबीर कौर ने बताया कि जब कोर्ट में मामला लंबित हो और दोनों पक्षों की सुनवाई चल रही हो, तो अदालतें अपनी ओर से दोनों पक्षों को यह सुझाव देती हैं कि मामले को विधिक सेवा प्राधिकरण में स्थित मध्यस्थता केंद्र में ले जाया जाए। वहां प्रशिक्षित मध्यस्थ की मौजूदगी में समाधान निकालने का प्रयास किया जाता है। सीजेएम ने बताया कि आगामी 12 मार्च को करनाल जिले में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाना है जिसका स्थानीय लोगों को लाभ लेना चाहिए।
डॉ. चौहान और जसबीर कौर की चर्चा में यह जानकारी भी निकल कर सामने आई कि विवाद के दोनों पक्षों को आपसी बातचीत से मामला सुलझाने का मौका देने के उद्देश्य से हर कोर्ट में दैनिक लोक अदालत का आयोजन भी होता है। राष्ट्रीय लोक अदालतों का कार्यक्रम हर दो महीने पर निर्धारित किया जाता है। लोक अदालतों के आयोजन का कार्यक्रम पहले से ही बता दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर इस वर्ष कुल 4 लोक अदालतों का आयोजन किया जाना है। 12 मार्च के बाद अप्रैल के महीने में करनाल जिले में लोक अदालत का आयोजन किया जाएगा। दो लोक अदालतों के बीच दो महीने का अंतराल इसलिए दिया जाता है ताकि वादियों को अपने वकीलों और संबंधित पक्षों से परामर्श करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
क्या हत्या के मामले को भी लोक अदालत में सुलझाया जा सकता है? डॉ. चौहान की इस जिज्ञासा पर सीजेएम जसबीर कौर ने बताया कि हत्या, हत्या के प्रयास और बलात्कार जैसे संगीन मामलों को लोक अदालत में ले जाने की अनुमति कानून नहीं देता। लोक अदालत में सिर्फ उन मामलों को लिया जाता है जो कोर्ट में चल रहे हों और जो निर्धारित श्रेणियों के अंतर्गत आते हों। इसके लिए वादियों को स्वयं या वकील के माध्यम से अदालत को यह बताना होगा कि वे मामले का आपसी रजामंदी से समाधान चाहते हैं।
प्री लिटिगेटिव मामलों पर प्रकाश डालते हुए सीजेएम ने बताया कि पुलिस स्टेशन में वैवाहिक विवाद की शिकायत करते ही पुलिस तुरंत रिपोर्ट दर्ज नहीं करती। पुलिस ऐसे मामलों को पहले मध्यस्थता केंद्रों में ले जाती है और दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर आपसी बातचीत से विवाद सुलझाने के लिए तैयार करती है। लोक अदालतों में दीवानी और फौजदारी दोनों किस्म के मामले लिए जाते हैं।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी जसबीर कौर ने बताया कि समाज के लगभग सभी वर्गों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के लिए सरकार की ओर से व्यवस्था की गई है। 18 वर्ष से कम और 60 वर्ष से अधिक आयु के सभी स्त्री-पुरुषों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध है। 18 वर्ष से 60 वर्ष की आयु के बीच के पुरुषों को भी मुफ्त कानूनी सहायता मिल सकती है, लेकिन इसके लिए उसे अदालत को यह बताना होगा कि उसकी वार्षिक आय तीन लाख रुपए से कम है। इसके अलावा दिव्यांगजन, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सभी उम्र के लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध है। यदि कोई व्यक्ति अदालत जाने में असमर्थ हो तो उसे फोन पर भी यह सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है। करनाल स्थित मध्यस्थता केंद्र में 0184-2266138 नंबर पर कॉल कर कानूनी सहायता ली जा सकती है। यह सुविधा सोमवार से लेकर शुक्रवार तक सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक उपलब्ध है।